बुधवार, 10 नवंबर 2021

गांव-गांव पहुंचानी होगी बैंकिंग... धन्यवाद शाखा प्रबंधक

 मुनस्यारी से वरिष्ठ पत्रकार पूरन पांडे

राष्ट्रीयकृत बैंकों के जरिये हमें अभी भी गांव-गांव पहुंचने की जरूरत है ताकि लोगों को बैंकिंग समझ आ सके और समय-समय पर मिलने वाले लोन एवं अन्य योजनाओं के बारे में लोगों को पता चल सके। यही नहीं दूर दराज के गांवों खासतौर पर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में तो ऐसी व्यवस्था की बहुत आवश्यकता है। यह कहना था अनेक बुद्धिजीवियों, वरिष्ठों एवं आमलोगों का। मौका था भारतीय स्टेट बैंक की मुनस्यारी शाखा की ओर से विकास खण्ड के जैती गांव में बैंक की विभिन्न सेवाओं को जन जन तक पहुंचाने के लिए आयोजित कैम्प का। इस मौके पर लोगों ने एसबीआई की संबंधित शाखा प्रबंधक की तारीफ इसलिए की कि उनके द्वारा नित नयी योजनाओं के बारे में पता चलता है। यही नहीं बैंक के वरिष्ठ अधिकारी जहां लोन आदि के बारे में बताते हैं वहीं इस बारे में भी जागरूक करते हैं कि जितना संभव हो लोन की वापसी भी समय पर कर देनी चाहिए।


बुधवार को आयोजित इस कैंप में शाखा प्रबंधक वरुण गुप्ता ने बैंक द्वारा प्रदत्त विभिन्न सेवाओं के लाभ के बारे में लोगों को अवगत कराया। इस दौरान प्रधानमंत्री द्वारा घोषित जन सुरक्षा योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए वरुण गुप्ता ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना एवं अटल पेंशन योजना के बारे में विस्तारपूर्वक लोगों को बताया।


वहां मौजूद कई लोगों ने बताया कि इस कैम्प के बाद लोगों में इन योजनाओं को लेकर जानकारी बढ़ी है तथा अधिकाधिक लोग इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए तत्पर दिखे। इसके साथ ही शाखा प्रबंधक ने बैंक में पहले से मौजूद विभिन्न ऋण योजनाओं के बारे में लोगों को बताया और बताया कि किस प्रकार से स्वरोजगार और कृषि उत्पादन करने वाले लोग आर्थिक सहायता, ऋण के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि लिया हुआ ऋण समय पर बैंक को लौटाएं जिससे और ज़रूरतमंद लोगों की सहायता की जा सके और मौजूदा ऋणी को भी आगे ऋण सहायता मिलती रहे। उन्होंने बताया कि यदि अपरिहार्य कारणों से ऋणी ऋण नहीं चुका पाते हैं तो बैंक उनको रीशेड्यूलिंग के माध्यम से या अभी चल रही ऋण समाधान योजना के माध्यम से सहायता करने का प्रयास करेगा।


कैम्प में उप प्रबंधक विश्वानसु साही भी उपस्थित रहे और उन्होंने इसी कैम्प में ही अनेक केसीसी ऋणों का नवीनीकरण भी किया। ग्राम प्रधान महेश कुमार ने इस कैम्प की सराहना की और बताया कि इस तरह का यह पहला कैम्प इस गांव में लगा है और इसके लगने से लोगों में बैंक के प्रति जागरूकता बढ़ी है। कैंप में उपस्थित लोगों में गांव के ही कमलेश कुमार, पार्वती देवी, देवकी देवी, भवानी देवी, रमेशआदि उपस्थित रहे और सभी ने शाखा प्रबंधक वरुण गुप्ता की अगुवाई में भारतीय स्टेट बैंक, मुनस्यारी शाखा की सराहना की। लोगों ने कहा कि बैंकों में ऐसे ही अधिकारियों को होना चाहिए जो मसलों का हल तो यथाशीघ्र करें ही, साथ ही समय-समय पर आने वाली योजनाओं के बारे में भी लोगों को बता सकें।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए व्यापक अभियान की जरूरत





कोरोना का खौफ कुछ कम हुआ तो अब जगह-जगह से डेंगू एवं तेज बुखार से लोगों के बीमार होने एवं कई लोगों की मौत की दुखद खबरें सुनने को मिल रही हैं। ऐसे में डॉक्टरों, विशेषज्ञों का कहना है कि हमें किसी खास सीजन में ही नहीं, बल्कि सालभर इम्युनिटी बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। इसके साथ ही जागरूकता अभियान भी चलाए जाने की जरूरत है। यह बात माउंटेन पीपुल फाउंडेशन (एमपीएफ) की अध्यक्ष सरोज पंत ने उस वक्त कही जब उन्होंने इस संबंध में यूपी के मुख्य सचिव एवं प्रधान सचिव (आयुष मंत्रालय) से मुलाकात की। उनके साथ ही संस्था से जुड़े एवं इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे उमेश पंत भी थे। जानकारों ने कहा कि एलोपैथी दवाओं से तात्कालिक फायदे के साथ ही होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक दवाओं या इम्युनिटी बूस्टर से भी हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा कर सकते हैं। संस्था ने होमियोपैथी और योग विज्ञान के द्वारा रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के विभिन्न प्रयोगों पर भी बल दिया। इस संबंध में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये बताया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजीव कुमार तिवारी तथा प्रिंसीपल सेक्रेटरी (आयुष विभाग) प्रशांत त्रिवेदी जी के साथ माउंटेन पीपुल फाउंडेशन की अध्यक्ष सरोज पंत तथा डॉ. उमेश चंद्र पंत ने होमियोपैथी के द्वारा रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर तथा होमियोपैथिक पद्धति के द्वारा  कोविड-19 एवं डेंगू के लिए प्रीवेंटिव व इम्यूनिटी बूस्टर दवा जिले और प्रदेश स्तर पर मुहैया कराने की मुहिम के बारे में चर्चा की।
जनसेवा में लगे हैं डॉ पंत
डॉ उमेश पंत एवं सरोज पंत लंबे समय से जनसेवा में लगे हैं। गाजियाबाद के वसुंधरा स्थित सेक्टर पांच में वह लंबे समय से रह रहे हैं। शिक्षा पूरी करने के बाद उमेश ने यहीं होमियोपैथी पद्धति से इलाज करना सीखा और बाकायदा डिग्री ली। उधर, संस्था एमपीएफ को पिछले दिनों उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत के उपराष्ट्रपति ने सम्मानित किया। डॉ पंत का कहना है, 'आज के दौर में हमें एक दूसरे की मदद के लिए आगे आना चाहिए। इसके साथ ही हर किसी को यह समझना होगा कि जान है तो जहान है। इसलिए स्वस्थ रहें। होमियोपैथी पद्धति से यदि किसी रोग का समय पर उपचार शुरू हो जाए तो उसके बहुत फायदे हैं।' उनके इस कार्य को काफी सराहना मिल रही है।

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

हंसते-कूदते दिखे बच्चे : तस्वीर तो सुखद है, नजर न लगे

केवल तिवारी बृहस्पतिवार 19 अगस्त, 2021 को ऑफिस आते वक्त किसी को ड्रॉप करने थोड़ा आगे तक जाना पड़ा। ट्रिब्यून चौक से कोई चार चौक और आगे। लौटते वक्त कई जगह बच्चे दिखे। स्कूली बच्चे। ज्यादातर शायद 9वीं से 11वीं या 12वीं तक के बच्चे होंगे। कहीं वे हंस रहे हैं, कहीं साइकिल से रेस कर रहे हैं और कहीं पैदल चलते हुए किसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं। उन्हीं में से कुछ बच्चे बस या ऑटो में बैठने के लिए दौड़ भी रहे हैं। बहुत दिनों बाद दिखी ऐसी तस्वीर। बड़ा अच्छा लगा। मैं ऑफिस के लिए चला आ रहा था और पता नहीं क्यों मेरी नजर हर बार बच्चों पर ही चली जाती थी। हर चौक के पास। अलग-अलग ड्रेस में। जब ऑफिस के गेट पर पहुंचा तो वहां कई बच्चे बाहर लगे वाटर कूलर से बोटल में पानी भर रहे थे। एक-दो बच्चे वहीं पानी पी भी रहे थे। कंधे पर बैग टंगे हुए। पास में साइकिल खड़ी। एक साइकिल में दो-तीन बच्चे। मुझे पुराने दिन याद आ गये। लखनऊ मांटेसरी स्कूल में हम साथी लोग भी साइकिल से जाते थे। कई बार साइकिल नहीं होती तो कभी मित्र विमल तो कभी कोई और तेलीबाग तक छोड़ जाते। कई बार हम लोग भी एमईएस (MES) के दफ्तर में जाकर ठंडा पानी पीते। कभी बेर तोड़ने लग जाते और कभी-कभी इमली भी तोड़ते। रास्ते में कैंट एरिया में ड्यूटी पर तैनात किसी फौजी को सैल्यूट कर देते। हमारे लिए यह सब मजाक था, लेकिन फौजी भी कभी-कभी गजब के होते। वे हमारे सैल्यूट का जोरदार तरीके से जवाब देते और हंस देते। एक-दो बार डांट भी पड़ी। खैर... आज बहुत दिनों बाद बच्चों की ऐसी टोलियां देखकर बहुत प्रसन्नता मिली। देख रहा था कि कुछ दिनों से कोरोना महामारी की खबरें भी मीडिया में हाशिये पर हैं। कई अखबारों में तो पहले पन्ने से गायब हैं। चैनल्स में भी लीड स्टोरी की तरह कोरोना की खबर नहीं है। मुंबई में कई फिल्मों की शूटिंग शुरू हो चुकी है। टीवी पर नये-नये शोज आने लगे हैं। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में साप्ताहिक बाजारों को लगाने की अनुमति दे दी गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात सुधरेंगे। याद है ना महामारी की दूसरी लहर। इस कोरोना की दूसरी लहर ने तो हिलाकर रख दिया। भतीजे बिपिन का जाना तो सचमुच अनर्थ सा लगा। अब भी लगता है जैसे वह अचानक कहीं से आ जाएगा। ऐसे ही कई मित्र गये। प्रशांत चला गया। हिंदुस्तान अखबार में हमारे वरिष्ठ रहे और हमेशा मार्गदर्शन करने वाले दिनेश तिवारी जी चले गये। राजीव कटारा जी चले गये, शेष नारायण सिंह जी चले गये। ऐसे कई अन्य हम उम्र, मुझसे छोटे पत्रकार और जानकार बंधु चले गये। खौफ का वह मंजर अब भी रौंगटे खड़े कर देता है। अब तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। साथ ही यह भी चेतावनी है कि बच्चों पर ज्यादा असर पड़ सकता है। कुछ दिन पहले एक सुखद संभावना थी कि हो सकता है कि तीसरी लहर न ही आये। ईश्वर से दुआ है कि अब बस हो। कोरोना का क्रंदन अब नहीं सुना जा सकेगा। हमें भी ध्यान रखना होगा। मैंने जैसा कि कुछ बच्चों से भी कहा, बच्चो स्कूल जाओ, अच्छा लग रहा है, लेकिन मास्क पहना करो। बच्चे तो बच्चे। मैं पहले से कहता रहा हूं कि बहुत मुश्किल है उन्हें ऐसी बंधनाओं में बांधना। मुझे याद है छोटे बेटे को जब बाहर जाने से रोकता था तो वह परेशान हो जाता। एक दिन तो मुझे भी अजीब लगा जब उसने आंगन के पास बाहर जाने के लिए दरवाजे पर खड़े होकर कहा, ‘पापा बाहर नहीं जाऊंगा, लेकिन जो बच्चे खेल रहे हैं, यहां खड़े होकर उनकी आवाज सुनता रहूं।’ ईश्वर कोरोना का खौफ अब न आये। हंसी-खुशी स्कूल आते-जाते बच्चों की इस तस्वीर पर किसी की नजर न लगे।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

ओलंपिक में भारत के सितारे

साभार : दैनिक ट्रिब्यून www.dainiktribuneonline.com हमारे ओलंपिक सितारे कोरोना महामारी के चलते एक साल बाद हुए ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि मुश्किल हालात भी उन्हें डिगा नहीं सकते। टोक्यो में खेलों के इस महाकुंभ के दौरान तिरंगा शान से लहराया। जीत की नयी इबारत लिखी गयी जो भविष्य के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी। ओलंपिक 2020 के इन महानायकों का लंबा सफर कई पड़ावों और विभिन्न तरह के अनुभवों से गुज़रा है। देश का नाम रोशन करने वाले इन बड़े खिलाड़ियों से परिचय करा रहे हैं केवल तिवारी नीरज चोपड़ा वज़न कम करने की जद्दोजहद में थाम लिया भाला किसान के बेटे हैं। संयुक्त परिवार है। हरियाणा के पानीपत स्थित खांद्रा गांव के मूल निवासी हैं। खेलों में मिली उपलब्धि के बाद राजपूताना राइफल्स में सूबेदार बने। टोक्यो ओलंपिक के इस गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। नीरज बचपन में बहुत मोटे थे। वज़न कम कराने के लिए परिवार के लोगों ने कई जतन किए। उन्हें खूब दौड़ाया जाता था। उनके चाचा भीम चोपड़ा उन्हें गांव से काफी दूर शिवाजी स्टेडियम लेकर गये। दौड़ने-भागने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखने वाले नीरज को स्टेडियम में भाला फेंक का अभ्यास करते हुए खिलाड़ी दिखे तो बस उसी खेल में आगे बढ़ने की ठान ली। परिवार ने साथ दिया और आज नीरज ने इतिहास रच दिया। वह देश के लिए व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले पहले ट्रैक एंड फील्ड एथलीट हैं। नीरज ने अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी के साथ पहला स्थान हासिल कर गोल्ड अपने नाम किया। वह 2016 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर -20 विश्व रिकॉर्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वर्ष 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 2017 एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया था। बेटे की उपलब्धि पर पिता सतीश चोपड़ा कहते हैं, ‘खुशियों को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हम चार भाई हैं। नीरज भाग्यशाली रहा कि उसे पूरे परिवार का समर्थन मिला।’ मां सरोज कहती हैं, ‘नीरज सभी की उम्मीदों पर खरा उतरा और भारत का गौरव बढ़ाया।’ चाचा भीम चोपड़ा कहते हैं, ‘खिलाड़ी की कड़ी मेहनत और मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ परिवार का समर्थन और अच्छे संस्कार भी महत्वपूर्ण होते हैं। नीरज के पास ये सब हैं और वह सफल हुआ।’ मीराबाई चानू सपने तीरंदाजी के और बन गयीं वेट लिफ्टर मणिपुर की रहने वाली मीराबाई छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और कद की भी छोटी हैं। इम्फाल से करीब 20 किलोमीटर दूर उनका गांव नोंगपोक काकजिंग है। पहाड़ी इलाकों के जीवन की तरह इनका बचपन भी कठिन परिस्थितियों वाला रहा। चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी काटना और भोजन बनाने एवं पीने के लिए दूर-दराज से पानी भरकर लाना ही इनकी दिनचर्या थी। हां दिली रुझान खेलों के प्रति था। वह तीरंदाज बनना चाहती थी, लेकिन वेट लिफ्टर कुंजरानी के बारे में सुना तो इसी में आगे बढ़ने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और रविवार 8 अगस्त को अपना जन्मदिन एक शानदार जश्न के साथ मनाया। हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था। स्पोर्ट्स अकादमी घर से बहुत दूर थी। ट्रक में लिफ्ट लेकर वह जातीं, खूब पसीना बहातीं और वापस आकर घर के काम भी निपटातीं। तभी तो जब वह टोक्यो से लौटीं तो ट्रक ड्राइवर के लिए विशेष भोज का इंतजाम किया। बचपन से ही कड़ी मेहनत करने वाली चानू का जोश और जज्बा आखिरकार रंग लाया। टोक्यो ओलंपिक में पहले ही दिन पदक तालिका में भारत का नाम अंकित करा दिया था। उन्होंने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतकर भारोत्तोलन में पदक के 21 साल के सूखे को खत्म किया। इस 26 साल की खिलाड़ी ने कुल 202 किलो भार उठाया। वह ओलंपिक मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला भारोत्तोल्लक हैं। मीराबाई चानू के बारे में प्रसिद्ध है कि वह अपने बैग में हमेशा देश की मिट्टी रखती हैं। पीवी सिंधु 8 साल की उम्र से ही खेलने लगीं बैडमिंटन महज 8 साल की उम्र में बैडमिंटन थाम लिया था। शौकिया खेल की तरह नहीं, जूनून के साथ। जुनून तो होना ही था। आखिर परिवार में माहौल ही खेल और खिलाड़ी का था। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु के पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खेल चुके हैं। मां तो अर्जुन अवार्डी हैं। बैडमिंटन पर अपना अलग स्टाइल बना चुकीं पीवी सिंधु का जोश और जज्बा ही था कि ओलंपिक में इनके जाने पर ही पदक की उम्मीद बंध चुकी थी और हुआ भी वैसा ही। इस 26 साल की खिलाड़ी ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था। वह ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली देश की पहली महिला और कुल दूसरी खिलाड़ी हैं। हैदराबाद की इस खिलाड़ी ने 2014 में विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी। पूरी दुनिया में स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी के तौर पर ख्याति पा चुकीं पीवी सिंधु को अब तक कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। बचपन से ही बैडमिंटन खेल रहीं सिंधु ने तब और दृढ़ संकल्प ले लिया जब 2001 में पुलेला गोपीचंद ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप का खिताब जीते। सिंधु ने अपनी पहली ट्रेनिंग सिकंदराबाद में महबूब खान की देखरेख में शुरू की थी। इसके बाद सिंधु गोपीचंद की अकादमी से जुड़कर बैडमिंटन के गुर सीखने लगीं। कई अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश का नाम रोशन कर चुकीं सिंधु प्रसन्न रहकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहने को ही सफलता की सही डगर मानती हैं। रवि दहिया पिता की मेहनत पर जड़ दी चांदी हरियाणा का एक और कामयाब छोरा। सोनीपत का गांव नाहरी, मूल निवास। किसान परिवार। पिता राकेश कुमार ने रवि कुमार दहिया को 12 साल की उम्र में ही दिल्ली स्थित छत्रसाल स्टेडियम भेज दिया। बेशक आर्थिक तंगी थी, लेकिन पिता ने रवि पर पूरी ताकत झोंक दी और खुद रोज 60 किलोमीटर की दूरी तय कर बेटे के लिए दूध, मक्खन आदि लेकर जाते। इधर, पिता बेटे को कामयाब देखना चाहते थे और उधर, बेटा भी जी-जान से लगा हुआ था पिता के सपनों को साकार करने में। इरादे पक्के हों तो फिर जीत से कौन रोक सकता है। यही हुआ। रवि कुमार दहिया ने पिता के उस निर्णय को सही साबित कर दिखाया जो उन्होंने बचपन में ही ले लिया था। यानी स्टेडियम भेजकर बच्चे को भविष्य का सफल खिलाड़ी बनाने का फैसला। पिता की मेहनत और रवि की कसरत काम आई और टोक्यो ओलंपिक में रवि ने पुरुषों के 57 किग्रा फ्रीस्टाइल कुश्ती में रजत पदक जीत कर अपनी ताकत और तकनीक का लोहा मनवाया। रवि कुमार दहिया ने वर्ष 2019 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक का टिकट पक्का किया और फिर 2020 में दिल्ली में एशियाई चैम्पियनशिप जीती और अलमाटी में इस साल खिताब का बचाव किया। रवि ने 1982 के एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले सतपाल सिंह से ट्रेनिंग ली है। रवि ने वर्ष 2015 जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप में 55 किलोग्राम कैटेगरी में रजत पदक जीता। वह सेमीफाइनल में चोटिल हो गये थे। उन्हें ठीक होने में करीब एक साल लग गया। फिर 2018 वर्ल्ड अंडर 23 रेसलिंग चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल जीता। यही नहीं कोरोना महामारी से पहले उन्होंने एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। बजरंग पूनिया घुटने की चोट को भुलाया हरियाणा के झज्जर का पहलवान। पहलवानी विरासत में मिली। शादी में आठ फेरे लिए। एक फेरा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नाम। ये बजरंग हैं। बजरंग पूनिया। घुटने में चोट के बावजूद पूरी मुस्तैदी से मुकाबला किया। कांस्य पदक मिला। देश को इस पदक पर गर्व, लेकिन खुद संतुष्ट नहीं। बजरंग पूनिया का टोक्यो का सफर बहुत कठिन रहा। उन्हें स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। बजरंग का कहना है कि वह कुछ दिन आराम करने के बाद एक बार फिर पूरे जोश के साथ भविष्य की प्रतियोगिताओं की तैयारी में खुद को झोंक देंगे। जुनूनी बजरंग ने महज सात साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी। कभी-कभी तो आधी रात को ही उठकर प्रैक्टिस करने लगते। बजरंग का जुनून ही था कि 2008 में अपने से कई किलोग्राम ज्यादा वजनी पहलवान से भिड़ गये और उसे चित्त कर दिया। बचपन से ही बजरंग के पिता जहां उन्हें कुश्ती के दांव सिखाते वहीं आर्थिक तंगी आड़े न आए, इस सोच के साथ काम करते। वह बस का किराया बचाकर साइकिल से अपने काम पर जाते थे। साल 2015 में बजरंग का परिवार सोनीपत में शिफ्ट हो गया, ताकि वह भारतीय खेल प्राधिकरण के सेंटर में ट्रेनिंग कर सकें। असल में बजरंग अभ्यास के लिए रूस गए, जहां एक स्थानीय टूर्नामेंट में उनका घुटना चोटिल हो गया। मीडिया कर्मियों से बातचीत में बजरंग ने कहा, ‘मेरे कोच और फिजियो चाहते थे कि मैं कांस्य मुकाबले में घुटने पर पट्टी बांधकर उतरूं, लेकिन मैं सहज महसूस नहीं कर रहा था। मैंने उनसे कहा कि अगर चोट गंभीर हो जाए तो भी मैं बाद में आराम कर सकता हूं लेकिन अगर मैं अब पदक नहीं जीत पाया तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। इसलिए मैं बिना पट्टी के ही मैट पर उतरा था।’ बजरंग पूनिया ने अब तक कई खिताब जीते हैं। लवलीना बारगोहेन पहले कोरोना को हराया, फिर विश्व चैंपियन को पिता टिकेन बारगोहेन का अपना व्यवसाय। माता मामोनी बारगोहेन हाउस वाइफ। बच्ची ने बचपन में ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मां ने पूरा सपोर्ट किया। पिता ने पैसे की तंगी नहीं आने दी और इस जुनूनी लड़की लवलीना बोरगोहेन ने 23 साल की उम्र में अपने करिअर के पहले ही ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह विजेन्दर सिंह और मैरी कॉम के बाद मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव की लवलीना पहले ‘किक-बॉक्सर’ बनना चाहती थीं। लवलीना और उनकी दो बहनों ने पिता के लिए चाय बागान के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी बहुत सपोर्ट किया। धीरे-धीरे पिता का व्यवसाय अच्छा जम गया और लवलीना के सपनों को पंख लगने लगे। उन्होंने अपने इरादे जाहिर किए और लग गयीं पूरी धुन से। टोक्यो ओलंपिक की तैयारी के लिए उन्हें यूरोप जाना था। कुल 52 दिनों का टूर था। लेकिन ऐन मौके पर कोरोना वायरस से संक्रमित हो गयीं। उन्होंने कोरोनो को मात दी और ऐसी शानदार वापसी की कि 69 किलोग्राम वर्ग में चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैम्पियन निएन-शिन चेन को मात दे दी। असम की इस लड़की के जीवन में भले ही आर्थिक तंगी कभी रोड़ा न बनी हो, लेकिन सामाजिक ताने-बाने से इन्हें कई बार दो-चार होना पड़ा। समाज में कई लोग लड़कियों को आगे बढ़ते नहीं देख सकते थे। लेकिन लवलीना को घरवालों का सपोर्ट मिला तो उन्होंने अपनी ट्रेनिंग शुरू कर दी। मैरीकॉम को अपना आदर्श मानने वाली लवलीना ने आखिरकार खूब मेहनत की और उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता रहा। शुरुआत छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं से हुई और देखते-देखते ओलंपिक तक का पदकीय सफर शानदार रहा। हॉकी हर खिलाड़ी की अपनी खासियत 41 वर्षों का सूखा खत्म किया। बेशक कांस्य ही लपक पाए, लेकिन जो जोश और जज्बा इस टीम ने दिखाया उससे हॉकी का स्वर्णिम भविष्य लिखा जाएगा। यह हॉकी की टीम इंडिया का ही तो कमाल था कि महामारी की उदासी के दौरान टीम का जज्बा सामने आया और हर खेल प्रेमी ने जश्न मनाया। जी हां, यह भारत की हॉकी टीम है। बहुत लंबे अंतराल के बाद हॉकी में भारत को पदक मिला। टीम के प्रत्येक सदस्य को कई राज्य सरकारों एवं संस्थाओं ने सम्मानित करने का फैसला किया है। यूं तो हर भारतीय ने दिल से टीम इंडिया का सम्मान किया है। इस टीम ने ग्रुप चरण के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-7 से बुरी तरह हारने के बाद मनप्रीत सिंह की अगुवाई में शानदार वापसी की। एक बारगी थोड़ा नर्वस हो चुकी टीम ने फिर से हिम्मत बांधी और आगे बढ़ी। पहले सेमीफाइनल में बेल्जियम से हारने के बाद टीम ने कांस्य पदक प्ले ऑफ में जर्मनी को 5-4 से मात दी। यह मात बेहद ऐतिहासिक रही। टोक्यो ओलंपिक में हॉकी की टीम इंडिया ने अपना बेस्ट परफारमेंस दिया। पूरे टूर्नामेंट के दौरान मनप्रीत की प्रेरणादायक कप्तानी के साथ गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने शानदार प्रदर्शन किया। कप्तान ने जहां बेहतरीन रणनीति बनायी वहीं श्रीजेश ने विरोधी टीम की ओर से दागे जा रहे कई महत्वपूर्ण गोल को पहले ही रोककर जीत का रास्ता सुगम किया। इस जीत के साथ ही हॉकी टीम ने पूरे देश में जश्न का माहौल बना दिया। आइये संक्षेप में जानते हैं हॉकी टीम के बारे में- टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह 19 साल की उम्र में ही टीम इंडिया में आ गए थे। वह विरोधी टीम की डिफेंस में सेंध लगाने के लिए जाने जाते हैं। इसी तरह पीआर श्रीजेश गोलकीपर हैं और टीम के सबसे वरिष्ठ खिलाड़ी। उन्होंने पूरे मुकाबले में कई गोल रोके। हरमनप्रीत सिंह रियो ओलंपिक में भी टीम इंडिया के हिस्सा थे। उन्हें पेनाल्टी कॉर्नर एक्सपर्ट माना जाता है। रुपिंदर पाल सिंह की लंबी हाइट का टीम को लाभ मिलता है। हरियाणा के सुरेंद्र कुमार को टीम डिफेंस की रीढ़ माना जाता है। अमित रोहिदास लंबे वक्त तक टीम इंडिया से बाहर रहे, अब शानदार वापसी हुई और जोरदार तरीके से खेल रहे हैं। बिरेंदर लाकरा का यह दूसरा ओलंपिक है। ओडिशा के हैं और हॉकी के ऑल राउंडर माने जाते हैं। हार्दिक सिंह ने इस बार खास पहचान बना ली। प्री-क्वार्टरफाइनल में किया गया हार्दिक का गोल बहुत महत्वपूर्ण था। विवेक सिंह प्रसाद का सबसे कम उम्र में टीम में आने वाले खिलाड़ियों में नाम है। टोक्यो में उन्होंने फॉरवर्ड लाइन का जिम्मा संभाला और टीम का बखूबी साथ दिया। मणिपुर के नीलकांत शर्मा, हरियाणा के सुमित वाल्मीकि, पंजाब के शमशेर सिंह और पंजाब के ही दिलप्रीत सिंह के अलावा गुरजंट सिंह और मनदीप सिंह भी हॉकी टीम इंडिया के अहम खिलाड़ियों में से हैं।

रविवार, 1 अगस्त 2021

बोर्ड परीक्षा और डीपीएस सिद्धार्थ विहार के बच्चों के शानदार तर्क

केवल तिवारी कोविड महामारी के कारण इस बार अकल्पनीय चीजें हुईं। कुछ समय के लिए तो दुनिया मानो ठप सी पड़ गयी। बोर्ड परीक्षाएं कराने को लेकर सरकार की हां-नां के बीच अंतत: परीक्षाएं रद्द हो गयीं और अब तो परिणाम भी आ गये। कुछ परिणामों से 'अति संतुष्ट' हैं और कुछ 'संतुष्ट।' असंतुष्ट शायद ही कोई होगा। खैर, इसी दौरान दिल्ली पब्लिक स्कूल, सिद्धार्थ विहार-गाजियाबाद के बच्चों के बीच एक ऑनलाइन वाद-विवाद प्रतियोगिता, 'बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करना उचित था अथवा अनुचित,' हुई। यहां की हिंदी विभाग की प्रमुख अनीता पंत मैडम ने मुझे निर्णायक मंडल के सदस्य के तौर पर आमंत्रित किया। शनिवार, 31 जुलाई 2021 को यह प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता के दौरान मैं बच्चों को ध्यान से सुन रहा था। एक तो यह मेरी ड्यूटी थी कि मुझे ऐसा ही करना था, दूसरे बच्चों की तारतम्यता ने ऐसा बांधकर रखा कि मैं नि:शब्द हो गया। एक तो तय समय (बमुश्किल 2 या 3 मिनट) में बच्चे इतनी खूबसूरती से अपनी बात रख रहे थे कि कई बार तो भान होता कि ये तो कोई 'मैच्योर' लोगों के बीच प्रतियोगिता हो रही है। संचालन भी स्कूल की एक स्टूडेंट ने ही किया। उनका संचालन, बच्चों का अपनी बारी आते ही शुरू हो जाना और बिना टोकाटाकी के निश्चित समय में अपनी बात रखना और इस बीच तकनीकी सामंजस्य, बहुत बेहतरीन रहा। बच्चों के तर्क कि जब राजनीतिक रैलियां हो सकती थीं, जब कुंभ मेला हो सकता था, जब अन्य कार्यक्रम हो सकते थे फिर बोर्ड परीक्षाएं क्यों नहीं, गजब थे। इन तर्कों के जवाब में पहले परीक्षाओं के लिए इंतजार तो किया गया, तारीखें बदली गयीं, फिर जब देखा कि बच्चे इस कदर असमंजस में हैं कि वे अपने को स्थिर नहीं रख पा रहे हैं, इन सबसे इतर जान पहले है परीक्षाएं बाद में... क्या तर्कों का काट था। फिर सवाल कि प्री बोर्ड के आधार पर परिणाम ठीक नहीं, क्योंकि ज्यादातर बोर्ड परीक्षाओं में बैठने वाले बच्चे प्री बोर्ड पर ध्यान नहीं देते... इसके जवाब में खुद के आकलन के लिए हर परीक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए। यदि प्री बोर्ड परीक्षाएं हो रही हैं तो उसमें बच्चे खुद को ही देखते हैं कि वे कहां हैं, इसलिए लापरवाही ठीक नहीं। कुल मिलाकर करीब एक घंटे का यह कार्यक्रम अपनेआप में बहुत अच्छा रहा। बच्चे इतने आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रख रहे थे कि एकबारगी मैं भी हैरत में रह गया। जिन बच्चों ने इस कार्यक्रम में अपनी बात रखी चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में या फिर प्रश्न के तौर पर उनके नाम इस प्रकार हैं-गुन, अभि, सक्षम, संभव, दीक्षा, सुनान, वंश, नमन, अलीना, सुप्रीया, अक्षत, अंश, शौर्या, रिया, श्रुति, मौली और राहिनी। कार्यक्रम के शुरुआत में अनीता मैडम ने बेहतरीन अंदाज में बच्चों का हौसला बढ़ाया और कार्यक्रम की बागडोर बच्चों को सौंप दी। बाद में प्रिंसिपल मैडम और स्कूल की ही त्यागी मैडम एवं अन्य लोगों ने भी अपनी बात रखी। मैंने अपनी बात में यही कहा कि इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं। अगर सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं। चूंकि मुझे नंबर भी देने थे। भाषा, तर्क, समय सभी पर ध्यान देते हुए ये अंक देने थे। लेकिन सचमुच अंक देना ही कठिन लग रहा था। बस थोड़े-बहुत अंतर में ही एक-दो अंकों का ऊपर-नीचे हुआ, लेकिन यह तो बस तकनीकी मामला था। अव्वल तो यह है कि बच्चों ने अपनी बात रखकर एक छोटा ही सही, जनमत तैयार करने की कोशिश की। चूंकि कार्यक्रम हिंदी में था, इसलिए मैं बहुत प्रसन्न और सहज था। हिंदी पत्रकार जो हूं। मुझे याद है इसी तरह डीपीएस आरके पुरम में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर पर एक कार्यक्रम में बतौर जज मैं गया था। ऐसे ही गुजराती स्कूल, सेंट जोन्स और चंडीगढ़ में ट्रिब्यून मॉडल स्कूल में भी ऐसे कार्यक्रम में जाने का मौका मिला है। कोविड के दौरान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कई कार्यक्रमों में मैंने शिरकत की है, उनमें से यह भी एक बेहतरीन अनुभव वाला कार्यक्रम था। डीपीएस की प्रिंसिपल और अनीता मैडम का पुन: धन्यवाद।

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

मुबारक हो मित्रता, दोस्ती और फ्रेंडशिप डे

 केवल तिवारी

दिवस यानी डे मनाने का देश-दुनिया में जो चलन है, वह अनूठा तो है। इधर कुछ दशकों से अपने देश में भी जिस तरह से यह ‘culture’ फैला है, वह भी काबिल-ए-गौर है। मदर्स डे हो या फादर्स डे। वेलेंटाइन डे हो या फ्रेंडशिप डे। डॉक्टर्स डे हो या फिर कोई अन्य। मैंने कई दिवसों पर लिखा है, मुझसे लिखवाया भी गया है। विरोध में कभी नहीं रहा मैं। हालिया मसला है फ्रेंडशिप डे का। लोग कहते हैं कोई एक दिन थोड़ी हो सकता है मित्रता का। मित्रता तो शाश्वत है। मैं भी मानता हूं कि मित्रता तो एक ऐसी ‘रिश्तेदारी’ है जो टूटती नहीं। मित्रता के जिक्र पर मुझे याद आया मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र (Pratap Narain Mishra) का एक निबंध जिसका शीर्षक ही था ‘मित्रता’ शायद यह हमारे हिंदी के कोर्स में भी था। नौवीं और दसवीं के दौरान। बात आगे बढ़ाऊं, यहां पर यह उल्लेख करना जरूरी है कि हाल ही में नौवीं और दसवीं के ही पुराने साथियों ने एक व्हाट्सएप ग्रूप (Whatsapp group) बनाया है। मित्र विमल तिवारी की शायद पहल थी। फिर तो कई मित्र उसमें जुड़े। मित्र भजनलाल से भी मैं कई बार इस तरह के ग्रूप को बनाने के लिए कह चुका था, क्योंकि उनके संपर्क में कई मित्र हैं। इसी दौरान पत्रकारिता के दौरान मित्रों का भी एक group बना। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हम पढ़े। इस ग्रूप का नाम पंछी एक डाल के रखा गया। मित्र मनोज भल्ला ने इसकी पहल की। इन ग्रूप्स में विचारों में भिन्नता है, लेकिन मन में नहीं। यानी मतभेद हैं, मनभेद नहीं। परिवार के ग्रूप को छोड़ दें तो (क्योंकि ऐसे ग्रूप तो होने ही हैं आत्मीय) मेरे पसंदीदा ग्रूप में ‘हिंदी हैं हम’ शामिल हैं। बड़े भाई समान हीरावल्लभ शर्मा जी ने मुझे इसमें जोड़ा। अनेक विद्वजन इसमें हैं। विचारों का आदान-प्रदान होता है। अच्छे और सकारात्मक संदेश पढ़ने को मिलते हैं। इसी तरह बेसहरा एवं गरीब बच्चों के लिए सार्थक प्रयास कर रहे उमेश पंत की पहल पर बना एक समूह करीब डेढ दशक से निर्बाध चल रहा है। कोरोना काल को छोड़ दें तो महीने-दो महीने में 20-22 लोग मिलते हैं और साल में ये सभी परिवार। इस समूह के लोग धन संग्रह ग्रूप से जुड़े हैं। कोरोना काल में भी अनेक ग्रूप बने जो सिर्फ सहायतार्थ बने। किसी को कोई जरूरत थी तो उसके लिए या किसी का नंबर लेने के लिए। लेकिन वर्चुअल (Virtual) दुनिया तो वर्चुअल ही होती है। अंतत: लोग Good morning Good night पर आ ही जात हैं।

खैर... बात मैं मित्रता दिवस यानी Friendship Day पर कर रहा हूं। मेरी बात पीछे छूट गयी थी प्रताप नारायण मिश्र जी की रचना मित्रता पर। उसी में शायद एक कहानी का जिक्र था जिसमें एक राजकुमार कुछ दिनों से अपने पिता के साथ नहीं आ-जा रहा था। यानी पिता से कटा-कटा सा रहता था। राजकुमार की जब राजा ने खैर ख्वाह ली तो उन्होंने संदेश भेजा, ‘मुझे बुखार है।’ राजा ने गौर किया कि इस दौरान राजकुमार के तमाम मित्र उससे मिलने आते हैं प्रसन्नचित्त दिखते हैं। आते हुए भी जाते हुए भी। पता चला कि राजकुमार आमोद-प्रमोद में लीन होने लग गए थे। उनके कथित मित्र इस सबका आनंद ले रहे थे। एक दिन राजा स्वयं राजकुमार का हालचाल लेने पहुंच गये। राजकुमार के मित्र इधर-उधर से नौ दो ग्यारह हो गये। पिताजी के अचानक आगमन से राजकुमार अचंभित। क्या कहें? डर भी कि पता नहीं राजाजी क्या करेंगे। राजा ने धैयै से पूछा, ‘अब बुखार कैसा है?’ राजकुमार को कुछ नहीं सूझा, बोले-‘पिताजी बुखार ने मुझे अभी-अभी छोड़ा है।’ राजा ने राजकुमार के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘बहुत अच्छी बात है, कुसंगति रूपी बुखार जितना जल्दी छोड़ दे, अच्छा है। ये न छोड़े तो व्यक्ति को स्वयं ऐसी संगत को छोड़ देनी चाहिए।’ यह एक कहानी थी मित्रता के बारे में बताने की। यानी अच्छी संगत है तो ठीक, बुरी संगत है तो सब गड्डमड्ड। संगति को लेकर भी अलग-अलग विचार हैं। एक विचार है कि यदि व्यक्ति स्वयं ठीक है तो कुसंगति उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसका तर्क देने वाले कबीर दास जी को कोट करते हुए कहते हैं-

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत। चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।

या इस तरह से

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।

दूसरी ओर संगति के असर पर तर्क दिया जाता है-

काजल की कोठरी से कैसे ही सयानो जाये, एक लीक लागि है, लागि है पै लागि है।

खैर मेरा विचार है कि संगत, कुसंगत का असर किशोरावस्था तक ही सीमित है। प्रैक्टिल लाइफ में तो आपको कितने ही लोग मिलते हैं और आप सबको टैकल करते हुए चलते हैं। वैसे मित्रता की परिभाषा समझाने वाले कहते हैं कि जरूरी नहीं समान विचारधारा वाले ही मित्र बनें। समान हैसियत वाले ही मित्र बनें। कृष्ण-सुदामा की मित्रता की चर्चा हमारे यहां की जाती है। एक समय बाद जब मैच्योरिटी आ जाती है तो संगत-कुसंगत गौण हो जाती है। विचार भिन्नता तो हो सकती है, लेकिन खुद को ही श्रेष्ठ और सबकुछ मानने वाले व्यक्ति के साथ शायद ही किसी की मित्रता हो सकती हो। तभी तो शायद रहीमदास जी ने कहा-

कह रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।

 

कोरोना का दौर और मित्रता

रहीम दास जी का एक दोहा है-

कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीति, विपत्ति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत।

विपत्ति में काम आने वाला ही असली मित्र है। कोरोना काल में अनेक मित्र भी असहाय से हो गये थे। अस्पतालों में पद, पैसा और प्रतिष्ठा कोई चीज काम नहीं आ रही थी, लेकिन फिर भी लोगों ने कोशिशें कीं। सोशल साइट्स पर कई ग्रूप बने। जिससे जितना बन पड़ा, उतनी मदद की। किसी की मदद काम आ गयी, कोई उदास ही रह गया। वह दौर तो था ही ऐसा। अकल्पनीय।

 

कुछ तो बात है, वरना कैसे हो जाती है मित्रता?

बेशक मित्रता किसी का चुनाव या चयन करके नहीं की जाती, लेकिन कुछ तो ऐसा होता है जो दो लोगों को मित्र बना देता है। एक कहावत भी तो है कि आप एक मैदान में हजार लोगों को छोड़ दीजिए, कुछ ही देर में आपको 10-10 या 20-20 लोगों का समूह बना मिलेगा। यानी विचारों के मैच करने पर दोस्ती हो ही जाती है। कई बार आप ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं तो आपके अनजान लोग मित्र बन जाते हैं। यह मित्रता लंबी चलती है। फिर भी आगाह किया जाता है कि-

गिरिये पर्वत शिखर ते, परिए धरनी मंझार। मूरख मित्र न कीजिए, बुड़ो काली धार।।

अच्छे मित्र की महत्ता को इस तरह से बताया गया है-

कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय। खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय।।

इसी तरह तुलसीदास जी कहते हैं-

आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

मित्रता हो जाये तो जरा-जरा सी बात पर उसमें दरार नहीं आनी चाहिए। मुझे याद है बचपन में एक बार बड़े साहब ने मित्रता के बारे में कहा था जब दो सत्यवादी सती हो जायें वही मित्रता है। उन्होंने दोस्ती को दो सती नाम दिया। इसका अर्थ उन्होंने समझाया कि जब दो लोगों के बीच हुई बातें तीसरे तक न पहुंचे, यही मित्रता है। इस मित्रता को अपने इगो या गलतफहमी में तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि-

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े तो गांठ परि जाय॥

साथ ही यह भी कहा गया कि अच्छा व्यक्ति यदि रूठ जाता है तो उसे मनाना चाहिए। कहा गया-

टूटे सुजन मनाइये जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि-फिरि पोहिये, टूटे मुक्ताहार।।

इसी तरह रीतिकालीन कवि बिहारी ने भी आगाह किया कि मित्रता को शाश्वत बनाये रखने के उपाय यही है कि इसमें धन-वैभव न आने दें। -

जौ चाहत, चटकन घटे, मैलौ होइ न मित्त। रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह-चीकन चित्त॥

कहीं-कहीं रिश्तेदारी को भी मित्रता कहा जाता है। असल में वह भी मित्रता ही तो है। मित्रता को लेकर संस्कृत के दो श्लोक इस तरह से हैं-

 

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥ ...

जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ .

 

इस तरह शुरू हुआ इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे

इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक फ्रेंडशिप डे की शुरुआत वर्ष 1930 से 1935 के बीच अमेरिका से हुई थी। कहानी के मुताबिक एक व्यापारी ने इस दिन की शुरुआत की थी। जोएस हाल नाम के इस व्यापारी ने सभी लोगों को बधाई देने का सिलसिला शुरू किया। कहा जाता है कि इस खास दिन को मनाने के लिए उस व्यापारी ने 2 अगस्त के दिन को चुना था। बाद में यूरोप और एशिया के बहुत से देशों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। दुनियाभर के अलग-अलग देशों में फ्रेंडशिप डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है. 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 30 जुलाई को आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे घोषित किया था। हालांकि, भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। ओहायो के ओर्बलिन में 8 अप्रैल को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। इस बार फ्रेंडशिप डे पहली अगस्त को है। सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं। Happy friendship day.

 

सोमवार, 26 जुलाई 2021

18 बरस का कुक्कू

 


प्रिय बेटे कुक्कू। सदा खुश रहो। खूब तरक्की करो। आज तुम 18 वर्ष को हो गये हो। इस उम्र का मतलब समझते हो। अब वह बैंक अकाउंट सिर्फ तुम्हारे नाम होगा जिसको अब तक आपकी मम्मा ऑपरेट करती थीं। वोटर कार्ड तुम्हारे नाम से बनेगा। यानी अब तुम वोटर बन जाओगे। और भी कई बदलाव होंगे और सबसे बड़ी बात कि अब तुम कॉलेज लाइफ में प्रवेश करोगे जहां तुम्हारा वास्ता बहुत अलग तरह की दुनिया से पड़ेगा। उस दुनिया से तालमेल बिठाते हुए जहां तुम्हारी नजर भविष्य पर अपने लक्ष्य पर होगी, वहीं कॉलेज लाइफ को एंजॉय भी करना होगा।

यह बर्थडे वास्तव में खास है, लेकिन इस खास में कोरोना महामारी का फीकापन सवार हो गया। नहीं तो इस वक्त शायद तुम नये संस्थान में एडमिशन लेने की जद्दोजहद में होते या शायद एडमिशन हो चुका होता। खैर कोई बात नहीं। सब समय का फेर है। इसी तरह आज के दिन मेरे और तुम्हारी मम्मा के भी बहुत कुछ करने के अरमान थे। जैसे सुबह पूजा-पाठ, फिर कहीं घूमने का कार्यक्रम। शाम को बर्थडे सेलिब्रेशन आदि। पूजा-पाठ नातक (प्रमोद का बेटा हुआ है, शुभ सूचना है। नातक में सूखी पूजा होगी) के कारण विस्तार से नहीं होगी। कुछ पकवान तो बनेंगे ही। बाकी कुछ न भी हो पाये तो भावना तो बहुत कुछ करने की है ही। कार्तिक तुमसे बेटा कुछ भी नहीं छिपा है। आर्थिक स्थिति से लेकर, सामाजिक व पारिवारिक। बस बेटा, इतना ध्यान रखना बड़ों का सम्मान करना। छोटों को प्यार देना। दोस्ती परखकर करना। बात सबसे करना, लेकिन जहां तुम्हें कुछ अटपटा लगे, खुद ही किनारे हो जाना। वैसे मैंने देखा है कि संगति के मामले में तुम्हारा चयन ठीक रहता है। अब एक बड़ा काम तुमको वैक्सीन लगाने का है। देखते हैं कब लग पाती है। जेईई एडवांस का पेपर देने के बाद जरूर तीन-चार दिन घूमने चलेंगे ताकि रिलैक्स होकर नयी शुरुआत कर सको। अपनी एक कविता के साथ तुम्हें फिर से ढेर सारी बधाइयां, शुभकामनाएं।

तुम बालिग हो गये हो तो क्या

हो तो जिगर के टुकड़े।

जिगर बड़ा नहीं होता

पर उसके बगैर

काम भी तो नहीं चलता।

जीवन की गति की मानिंद

अब तुम पकड़ोगे रफ्तार

रफ्तार पर नियंत्रण भी होगा रखना

हां, यही तो मेरा है कहना

अपना ध्यान तुम अब ज्यादा रखना।

बहुत कुछ तो सीखता हूं तुमसे

इस सिखाने को जारी रखना

नयी खोजों पर तुम्हारे ज्ञान का हूं कायल

हां जीवन की सीख तुम मुझसे लेते रहना।

केवल की भावना को तुम समझते रहना

धवल के पथ पर भी अनुभव बिखेरना।

ताऊ-ताई, बुआ-फूफा सबको प्रणाम करना

दद्दा, दीदी को भी बातें बताते रहना।

बहुत हुए उपदेश चलो अब आगे चलें

आओ बालिग कुक्कू का बर्थडे एंजॉय करें।

तुम्हारा पापा

केवल तिवारी

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

कोरोना काल में एक दूसरे की मदद को प्रेरित करता हरेला त्योहार

सुख समृद्धि की कामना का पर्व हरेला


ऋतु खंडूरी

विधायक, यमकेश्वर- उत्तराखंड

हरेला। यानी हर्याव। सुख समृद्धि की कामना का पर्व। दूसरों को आशीवर्चन देने का पर्व। खिलखिलाने का पर्व। दूसरों को खुश देखकर खुद खुश होने का पर्व। ऐसे ही तो कई संदेश छिपे हैं उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला में। इसे स्थानीय बोली में हर्याव भी कहते हैं। मूलत: कुमाऊं क्षेत्र में मनाये जाने वाला यह पर्व आज विश्वव्यापी है। यूं तो साल में तीन बार हरेला पर्व मनाया जाता है, लेकिन सावन मास की शुरुआत में मनाये जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है। सावन यानी हरियाली की शुरुआत। हरियाली यानी सुख-समृद्धि। इस शुरुआत पर हरेला का त्योहार मनाकर हम जहां अपने परिवेश में खुशहाली की कामना करते हैं, वहीं दूर देश में जा बसे अपने अपनों की भी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। बहनें चहकती हैं कि भाई को आशीर्वचन स्वरूप हरेला लगाएंगे यानी उनके सिर पर उन पौधों को रखेंगे जो उन्होंने कुछ दिन पहले बोये थे और आज (सावन माह की पहली तिथि) को काटकर उनकी पूजा-अर्चना कर अब सिर में रखने के लिए बड़े जतन से पूजा की थाल में रखे हैं। माएं अपने बच्चों के सिर पर भी इस हरेला को रखती हैं और ढेरों आशीर्वाद देती हैं। हरेला लगाते वक्त यानी हरेले को सिर पर आशीर्वाद स्वरूप रखते हुए कहा जाता है-

जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया दुब जस पनपी जाया,

आकाश जस उच्च, धरती जस चकाव है जाया, सिंह तराण, स्याव जस बुद्धि हो,

हिमाव में ह्ंयू रुण तलक गंग-जमुन में पाणि रुण तलक जी रया जागि रया।

यानी लंबी उम्र की कामना। दूब की तरह पनपते रहने का आशीर्वाद। शरीर सौष्ठव, लंबी उम्र का आशीर्वाद।

कोरोना के इस कालखंड में हम सब लोगों को एक-दूसरे की मदद तो करनी ही है, एक दूसरे के लिए ऐसी ही कामनाएं भी करनी हैं तभी हम इस महामारी से पार पा पाएंगे। असल में हरेला का त्योहार हमें साथ-साथ बने रहने की सीख देता है। साथ-साथ मन से। दूर देश में भी कोई व्यक्ति है तो उसके लिए भी मन से कामना। कई घरों में जो बच्चे बाहर रहते हैं, उनके नाम से भी पूजा की जाती है।

उत्तराखण्ड के कई पर्व हैं जिनमें खेती-बाड़ी पशुपालन का भाव होता है। लोक में व्याप्त इस महत्वपूर्ण अवधारणा को धरातल में साकार रूप प्रदान करने की दृष्टि से ही सम्भवतः हरेला पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हरेला जैसा पर्व ही अनेक जगह नवरात्र के समय भी मनाया जाता है। यूं भी इन दिनों भी एक नवरात्र चल रही हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। उमंग और उत्साह के साथ मनाये जाने वाले इस ऋतु पर्व का विशेष महत्व है।

कब होती है शुरुआत

कुमाऊं अंचल में हरेला पर्व सावन मास के प्रथम दिन मनाया जाता है। बता दें कि उत्तराखंड में सौरपक्षीय पंचांग का चलन होने से ही यहां संक्रांति से नए माह की शुरुआत मानी जाती है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन विशेष महत्व सावन वाले हरेला का ही है। परम्परा के अनुसार हरेला पर्व से नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की टोकरियों में हरेला बोया जाता है। इनमें पांच, सात अथवा नौ प्रकार के धान्य जैसे कि-धान, मक्का, तिल, उरद, गहत,  भट्ट, जौं सरसों के बीजों को बोया जाता है। घर के मंदिर में रखकर इन टोकरियां को रोज सबेरे पूजा करते समय जल के छींटां से सींचा जाता है। दो-तीन दिनों में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण का आकार पा लेते हैं। हरेला पर्व की पूर्व सन्ध्या पर इन तृणों की लकड़ी की पतली टहनी से गुड़ाई करने के बाद इनका विधिवत पूजन किया जाता है। जन मान्यतानुसार हिमालय के कैलाश पर्वत में शिव पार्वती का वास माना जाता है।  इस धारणा के कारण हरेले से एक दिन पहले कुछ इलाकों में शिव परिवार की मूर्तियां भी बनाने की परम्परा दिखती हैं। इन मूर्तियां को यहां डिकारे कहा जाता है।

आज के दौर में अपनी मान्यताओं और परंपराओं के गूढ़ रहस्य को और भी समझना आवश्यक है। पहले सावन मास से ही चातुर्मास शुरू हो जाता है, इसमें यात्राओं पर तो प्रतिबंध होता ही था, तामसिक चीजों के सेवन पर भी रोक थी। आज इन बातों का वैज्ञानिक आधार भी है। इसलिए परंपराओं के वैज्ञानिक आधार को समझिए। त्योहार के मर्म को समझते हुए आइये इस पवित्र त्योहार पर हम सभी मिलकर सबकी खुशहाली की कामना करें और दुआ करें कि महामारी का प्रकोप जल्दी खत्म हो।