रविवार, 1 अगस्त 2021

बोर्ड परीक्षा और डीपीएस सिद्धार्थ विहार के बच्चों के शानदार तर्क

केवल तिवारी कोविड महामारी के कारण इस बार अकल्पनीय चीजें हुईं। कुछ समय के लिए तो दुनिया मानो ठप सी पड़ गयी। बोर्ड परीक्षाएं कराने को लेकर सरकार की हां-नां के बीच अंतत: परीक्षाएं रद्द हो गयीं और अब तो परिणाम भी आ गये। कुछ परिणामों से 'अति संतुष्ट' हैं और कुछ 'संतुष्ट।' असंतुष्ट शायद ही कोई होगा। खैर, इसी दौरान दिल्ली पब्लिक स्कूल, सिद्धार्थ विहार-गाजियाबाद के बच्चों के बीच एक ऑनलाइन वाद-विवाद प्रतियोगिता, 'बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करना उचित था अथवा अनुचित,' हुई। यहां की हिंदी विभाग की प्रमुख अनीता पंत मैडम ने मुझे निर्णायक मंडल के सदस्य के तौर पर आमंत्रित किया। शनिवार, 31 जुलाई 2021 को यह प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता के दौरान मैं बच्चों को ध्यान से सुन रहा था। एक तो यह मेरी ड्यूटी थी कि मुझे ऐसा ही करना था, दूसरे बच्चों की तारतम्यता ने ऐसा बांधकर रखा कि मैं नि:शब्द हो गया। एक तो तय समय (बमुश्किल 2 या 3 मिनट) में बच्चे इतनी खूबसूरती से अपनी बात रख रहे थे कि कई बार तो भान होता कि ये तो कोई 'मैच्योर' लोगों के बीच प्रतियोगिता हो रही है। संचालन भी स्कूल की एक स्टूडेंट ने ही किया। उनका संचालन, बच्चों का अपनी बारी आते ही शुरू हो जाना और बिना टोकाटाकी के निश्चित समय में अपनी बात रखना और इस बीच तकनीकी सामंजस्य, बहुत बेहतरीन रहा। बच्चों के तर्क कि जब राजनीतिक रैलियां हो सकती थीं, जब कुंभ मेला हो सकता था, जब अन्य कार्यक्रम हो सकते थे फिर बोर्ड परीक्षाएं क्यों नहीं, गजब थे। इन तर्कों के जवाब में पहले परीक्षाओं के लिए इंतजार तो किया गया, तारीखें बदली गयीं, फिर जब देखा कि बच्चे इस कदर असमंजस में हैं कि वे अपने को स्थिर नहीं रख पा रहे हैं, इन सबसे इतर जान पहले है परीक्षाएं बाद में... क्या तर्कों का काट था। फिर सवाल कि प्री बोर्ड के आधार पर परिणाम ठीक नहीं, क्योंकि ज्यादातर बोर्ड परीक्षाओं में बैठने वाले बच्चे प्री बोर्ड पर ध्यान नहीं देते... इसके जवाब में खुद के आकलन के लिए हर परीक्षा को गंभीरता से लेना चाहिए। यदि प्री बोर्ड परीक्षाएं हो रही हैं तो उसमें बच्चे खुद को ही देखते हैं कि वे कहां हैं, इसलिए लापरवाही ठीक नहीं। कुल मिलाकर करीब एक घंटे का यह कार्यक्रम अपनेआप में बहुत अच्छा रहा। बच्चे इतने आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रख रहे थे कि एकबारगी मैं भी हैरत में रह गया। जिन बच्चों ने इस कार्यक्रम में अपनी बात रखी चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में या फिर प्रश्न के तौर पर उनके नाम इस प्रकार हैं-गुन, अभि, सक्षम, संभव, दीक्षा, सुनान, वंश, नमन, अलीना, सुप्रीया, अक्षत, अंश, शौर्या, रिया, श्रुति, मौली और राहिनी। कार्यक्रम के शुरुआत में अनीता मैडम ने बेहतरीन अंदाज में बच्चों का हौसला बढ़ाया और कार्यक्रम की बागडोर बच्चों को सौंप दी। बाद में प्रिंसिपल मैडम और स्कूल की ही त्यागी मैडम एवं अन्य लोगों ने भी अपनी बात रखी। मैंने अपनी बात में यही कहा कि इरादे नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं। अगर सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं। चूंकि मुझे नंबर भी देने थे। भाषा, तर्क, समय सभी पर ध्यान देते हुए ये अंक देने थे। लेकिन सचमुच अंक देना ही कठिन लग रहा था। बस थोड़े-बहुत अंतर में ही एक-दो अंकों का ऊपर-नीचे हुआ, लेकिन यह तो बस तकनीकी मामला था। अव्वल तो यह है कि बच्चों ने अपनी बात रखकर एक छोटा ही सही, जनमत तैयार करने की कोशिश की। चूंकि कार्यक्रम हिंदी में था, इसलिए मैं बहुत प्रसन्न और सहज था। हिंदी पत्रकार जो हूं। मुझे याद है इसी तरह डीपीएस आरके पुरम में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर पर एक कार्यक्रम में बतौर जज मैं गया था। ऐसे ही गुजराती स्कूल, सेंट जोन्स और चंडीगढ़ में ट्रिब्यून मॉडल स्कूल में भी ऐसे कार्यक्रम में जाने का मौका मिला है। कोविड के दौरान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कई कार्यक्रमों में मैंने शिरकत की है, उनमें से यह भी एक बेहतरीन अनुभव वाला कार्यक्रम था। डीपीएस की प्रिंसिपल और अनीता मैडम का पुन: धन्यवाद।

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