गुरुवार, 29 जुलाई 2021

मुबारक हो मित्रता, दोस्ती और फ्रेंडशिप डे

 केवल तिवारी

दिवस यानी डे मनाने का देश-दुनिया में जो चलन है, वह अनूठा तो है। इधर कुछ दशकों से अपने देश में भी जिस तरह से यह ‘culture’ फैला है, वह भी काबिल-ए-गौर है। मदर्स डे हो या फादर्स डे। वेलेंटाइन डे हो या फ्रेंडशिप डे। डॉक्टर्स डे हो या फिर कोई अन्य। मैंने कई दिवसों पर लिखा है, मुझसे लिखवाया भी गया है। विरोध में कभी नहीं रहा मैं। हालिया मसला है फ्रेंडशिप डे का। लोग कहते हैं कोई एक दिन थोड़ी हो सकता है मित्रता का। मित्रता तो शाश्वत है। मैं भी मानता हूं कि मित्रता तो एक ऐसी ‘रिश्तेदारी’ है जो टूटती नहीं। मित्रता के जिक्र पर मुझे याद आया मशहूर लेखक प्रताप नारायण मिश्र (Pratap Narain Mishra) का एक निबंध जिसका शीर्षक ही था ‘मित्रता’ शायद यह हमारे हिंदी के कोर्स में भी था। नौवीं और दसवीं के दौरान। बात आगे बढ़ाऊं, यहां पर यह उल्लेख करना जरूरी है कि हाल ही में नौवीं और दसवीं के ही पुराने साथियों ने एक व्हाट्सएप ग्रूप (Whatsapp group) बनाया है। मित्र विमल तिवारी की शायद पहल थी। फिर तो कई मित्र उसमें जुड़े। मित्र भजनलाल से भी मैं कई बार इस तरह के ग्रूप को बनाने के लिए कह चुका था, क्योंकि उनके संपर्क में कई मित्र हैं। इसी दौरान पत्रकारिता के दौरान मित्रों का भी एक group बना। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हम पढ़े। इस ग्रूप का नाम पंछी एक डाल के रखा गया। मित्र मनोज भल्ला ने इसकी पहल की। इन ग्रूप्स में विचारों में भिन्नता है, लेकिन मन में नहीं। यानी मतभेद हैं, मनभेद नहीं। परिवार के ग्रूप को छोड़ दें तो (क्योंकि ऐसे ग्रूप तो होने ही हैं आत्मीय) मेरे पसंदीदा ग्रूप में ‘हिंदी हैं हम’ शामिल हैं। बड़े भाई समान हीरावल्लभ शर्मा जी ने मुझे इसमें जोड़ा। अनेक विद्वजन इसमें हैं। विचारों का आदान-प्रदान होता है। अच्छे और सकारात्मक संदेश पढ़ने को मिलते हैं। इसी तरह बेसहरा एवं गरीब बच्चों के लिए सार्थक प्रयास कर रहे उमेश पंत की पहल पर बना एक समूह करीब डेढ दशक से निर्बाध चल रहा है। कोरोना काल को छोड़ दें तो महीने-दो महीने में 20-22 लोग मिलते हैं और साल में ये सभी परिवार। इस समूह के लोग धन संग्रह ग्रूप से जुड़े हैं। कोरोना काल में भी अनेक ग्रूप बने जो सिर्फ सहायतार्थ बने। किसी को कोई जरूरत थी तो उसके लिए या किसी का नंबर लेने के लिए। लेकिन वर्चुअल (Virtual) दुनिया तो वर्चुअल ही होती है। अंतत: लोग Good morning Good night पर आ ही जात हैं।

खैर... बात मैं मित्रता दिवस यानी Friendship Day पर कर रहा हूं। मेरी बात पीछे छूट गयी थी प्रताप नारायण मिश्र जी की रचना मित्रता पर। उसी में शायद एक कहानी का जिक्र था जिसमें एक राजकुमार कुछ दिनों से अपने पिता के साथ नहीं आ-जा रहा था। यानी पिता से कटा-कटा सा रहता था। राजकुमार की जब राजा ने खैर ख्वाह ली तो उन्होंने संदेश भेजा, ‘मुझे बुखार है।’ राजा ने गौर किया कि इस दौरान राजकुमार के तमाम मित्र उससे मिलने आते हैं प्रसन्नचित्त दिखते हैं। आते हुए भी जाते हुए भी। पता चला कि राजकुमार आमोद-प्रमोद में लीन होने लग गए थे। उनके कथित मित्र इस सबका आनंद ले रहे थे। एक दिन राजा स्वयं राजकुमार का हालचाल लेने पहुंच गये। राजकुमार के मित्र इधर-उधर से नौ दो ग्यारह हो गये। पिताजी के अचानक आगमन से राजकुमार अचंभित। क्या कहें? डर भी कि पता नहीं राजाजी क्या करेंगे। राजा ने धैयै से पूछा, ‘अब बुखार कैसा है?’ राजकुमार को कुछ नहीं सूझा, बोले-‘पिताजी बुखार ने मुझे अभी-अभी छोड़ा है।’ राजा ने राजकुमार के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘बहुत अच्छी बात है, कुसंगति रूपी बुखार जितना जल्दी छोड़ दे, अच्छा है। ये न छोड़े तो व्यक्ति को स्वयं ऐसी संगत को छोड़ देनी चाहिए।’ यह एक कहानी थी मित्रता के बारे में बताने की। यानी अच्छी संगत है तो ठीक, बुरी संगत है तो सब गड्डमड्ड। संगति को लेकर भी अलग-अलग विचार हैं। एक विचार है कि यदि व्यक्ति स्वयं ठीक है तो कुसंगति उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसका तर्क देने वाले कबीर दास जी को कोट करते हुए कहते हैं-

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत। चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।

या इस तरह से

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।

दूसरी ओर संगति के असर पर तर्क दिया जाता है-

काजल की कोठरी से कैसे ही सयानो जाये, एक लीक लागि है, लागि है पै लागि है।

खैर मेरा विचार है कि संगत, कुसंगत का असर किशोरावस्था तक ही सीमित है। प्रैक्टिल लाइफ में तो आपको कितने ही लोग मिलते हैं और आप सबको टैकल करते हुए चलते हैं। वैसे मित्रता की परिभाषा समझाने वाले कहते हैं कि जरूरी नहीं समान विचारधारा वाले ही मित्र बनें। समान हैसियत वाले ही मित्र बनें। कृष्ण-सुदामा की मित्रता की चर्चा हमारे यहां की जाती है। एक समय बाद जब मैच्योरिटी आ जाती है तो संगत-कुसंगत गौण हो जाती है। विचार भिन्नता तो हो सकती है, लेकिन खुद को ही श्रेष्ठ और सबकुछ मानने वाले व्यक्ति के साथ शायद ही किसी की मित्रता हो सकती हो। तभी तो शायद रहीमदास जी ने कहा-

कह रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।

 

कोरोना का दौर और मित्रता

रहीम दास जी का एक दोहा है-

कह रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीति, विपत्ति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत।

विपत्ति में काम आने वाला ही असली मित्र है। कोरोना काल में अनेक मित्र भी असहाय से हो गये थे। अस्पतालों में पद, पैसा और प्रतिष्ठा कोई चीज काम नहीं आ रही थी, लेकिन फिर भी लोगों ने कोशिशें कीं। सोशल साइट्स पर कई ग्रूप बने। जिससे जितना बन पड़ा, उतनी मदद की। किसी की मदद काम आ गयी, कोई उदास ही रह गया। वह दौर तो था ही ऐसा। अकल्पनीय।

 

कुछ तो बात है, वरना कैसे हो जाती है मित्रता?

बेशक मित्रता किसी का चुनाव या चयन करके नहीं की जाती, लेकिन कुछ तो ऐसा होता है जो दो लोगों को मित्र बना देता है। एक कहावत भी तो है कि आप एक मैदान में हजार लोगों को छोड़ दीजिए, कुछ ही देर में आपको 10-10 या 20-20 लोगों का समूह बना मिलेगा। यानी विचारों के मैच करने पर दोस्ती हो ही जाती है। कई बार आप ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं तो आपके अनजान लोग मित्र बन जाते हैं। यह मित्रता लंबी चलती है। फिर भी आगाह किया जाता है कि-

गिरिये पर्वत शिखर ते, परिए धरनी मंझार। मूरख मित्र न कीजिए, बुड़ो काली धार।।

अच्छे मित्र की महत्ता को इस तरह से बताया गया है-

कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय। खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय।।

इसी तरह तुलसीदास जी कहते हैं-

आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

मित्रता हो जाये तो जरा-जरा सी बात पर उसमें दरार नहीं आनी चाहिए। मुझे याद है बचपन में एक बार बड़े साहब ने मित्रता के बारे में कहा था जब दो सत्यवादी सती हो जायें वही मित्रता है। उन्होंने दोस्ती को दो सती नाम दिया। इसका अर्थ उन्होंने समझाया कि जब दो लोगों के बीच हुई बातें तीसरे तक न पहुंचे, यही मित्रता है। इस मित्रता को अपने इगो या गलतफहमी में तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि-

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े तो गांठ परि जाय॥

साथ ही यह भी कहा गया कि अच्छा व्यक्ति यदि रूठ जाता है तो उसे मनाना चाहिए। कहा गया-

टूटे सुजन मनाइये जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि-फिरि पोहिये, टूटे मुक्ताहार।।

इसी तरह रीतिकालीन कवि बिहारी ने भी आगाह किया कि मित्रता को शाश्वत बनाये रखने के उपाय यही है कि इसमें धन-वैभव न आने दें। -

जौ चाहत, चटकन घटे, मैलौ होइ न मित्त। रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह-चीकन चित्त॥

कहीं-कहीं रिश्तेदारी को भी मित्रता कहा जाता है। असल में वह भी मित्रता ही तो है। मित्रता को लेकर संस्कृत के दो श्लोक इस तरह से हैं-

 

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥ ...

जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ .

 

इस तरह शुरू हुआ इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे

इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक फ्रेंडशिप डे की शुरुआत वर्ष 1930 से 1935 के बीच अमेरिका से हुई थी। कहानी के मुताबिक एक व्यापारी ने इस दिन की शुरुआत की थी। जोएस हाल नाम के इस व्यापारी ने सभी लोगों को बधाई देने का सिलसिला शुरू किया। कहा जाता है कि इस खास दिन को मनाने के लिए उस व्यापारी ने 2 अगस्त के दिन को चुना था। बाद में यूरोप और एशिया के बहुत से देशों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। दुनियाभर के अलग-अलग देशों में फ्रेंडशिप डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है. 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 30 जुलाई को आधिकारिक तौर पर इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे घोषित किया था। हालांकि, भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देशों में अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। ओहायो के ओर्बलिन में 8 अप्रैल को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। इस बार फ्रेंडशिप डे पहली अगस्त को है। सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं। Happy friendship day.

 

सोमवार, 26 जुलाई 2021

18 बरस का कुक्कू

 


प्रिय बेटे कुक्कू। सदा खुश रहो। खूब तरक्की करो। आज तुम 18 वर्ष को हो गये हो। इस उम्र का मतलब समझते हो। अब वह बैंक अकाउंट सिर्फ तुम्हारे नाम होगा जिसको अब तक आपकी मम्मा ऑपरेट करती थीं। वोटर कार्ड तुम्हारे नाम से बनेगा। यानी अब तुम वोटर बन जाओगे। और भी कई बदलाव होंगे और सबसे बड़ी बात कि अब तुम कॉलेज लाइफ में प्रवेश करोगे जहां तुम्हारा वास्ता बहुत अलग तरह की दुनिया से पड़ेगा। उस दुनिया से तालमेल बिठाते हुए जहां तुम्हारी नजर भविष्य पर अपने लक्ष्य पर होगी, वहीं कॉलेज लाइफ को एंजॉय भी करना होगा।

यह बर्थडे वास्तव में खास है, लेकिन इस खास में कोरोना महामारी का फीकापन सवार हो गया। नहीं तो इस वक्त शायद तुम नये संस्थान में एडमिशन लेने की जद्दोजहद में होते या शायद एडमिशन हो चुका होता। खैर कोई बात नहीं। सब समय का फेर है। इसी तरह आज के दिन मेरे और तुम्हारी मम्मा के भी बहुत कुछ करने के अरमान थे। जैसे सुबह पूजा-पाठ, फिर कहीं घूमने का कार्यक्रम। शाम को बर्थडे सेलिब्रेशन आदि। पूजा-पाठ नातक (प्रमोद का बेटा हुआ है, शुभ सूचना है। नातक में सूखी पूजा होगी) के कारण विस्तार से नहीं होगी। कुछ पकवान तो बनेंगे ही। बाकी कुछ न भी हो पाये तो भावना तो बहुत कुछ करने की है ही। कार्तिक तुमसे बेटा कुछ भी नहीं छिपा है। आर्थिक स्थिति से लेकर, सामाजिक व पारिवारिक। बस बेटा, इतना ध्यान रखना बड़ों का सम्मान करना। छोटों को प्यार देना। दोस्ती परखकर करना। बात सबसे करना, लेकिन जहां तुम्हें कुछ अटपटा लगे, खुद ही किनारे हो जाना। वैसे मैंने देखा है कि संगति के मामले में तुम्हारा चयन ठीक रहता है। अब एक बड़ा काम तुमको वैक्सीन लगाने का है। देखते हैं कब लग पाती है। जेईई एडवांस का पेपर देने के बाद जरूर तीन-चार दिन घूमने चलेंगे ताकि रिलैक्स होकर नयी शुरुआत कर सको। अपनी एक कविता के साथ तुम्हें फिर से ढेर सारी बधाइयां, शुभकामनाएं।

तुम बालिग हो गये हो तो क्या

हो तो जिगर के टुकड़े।

जिगर बड़ा नहीं होता

पर उसके बगैर

काम भी तो नहीं चलता।

जीवन की गति की मानिंद

अब तुम पकड़ोगे रफ्तार

रफ्तार पर नियंत्रण भी होगा रखना

हां, यही तो मेरा है कहना

अपना ध्यान तुम अब ज्यादा रखना।

बहुत कुछ तो सीखता हूं तुमसे

इस सिखाने को जारी रखना

नयी खोजों पर तुम्हारे ज्ञान का हूं कायल

हां जीवन की सीख तुम मुझसे लेते रहना।

केवल की भावना को तुम समझते रहना

धवल के पथ पर भी अनुभव बिखेरना।

ताऊ-ताई, बुआ-फूफा सबको प्रणाम करना

दद्दा, दीदी को भी बातें बताते रहना।

बहुत हुए उपदेश चलो अब आगे चलें

आओ बालिग कुक्कू का बर्थडे एंजॉय करें।

तुम्हारा पापा

केवल तिवारी

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

कोरोना काल में एक दूसरे की मदद को प्रेरित करता हरेला त्योहार

सुख समृद्धि की कामना का पर्व हरेला


ऋतु खंडूरी

विधायक, यमकेश्वर- उत्तराखंड

हरेला। यानी हर्याव। सुख समृद्धि की कामना का पर्व। दूसरों को आशीवर्चन देने का पर्व। खिलखिलाने का पर्व। दूसरों को खुश देखकर खुद खुश होने का पर्व। ऐसे ही तो कई संदेश छिपे हैं उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला में। इसे स्थानीय बोली में हर्याव भी कहते हैं। मूलत: कुमाऊं क्षेत्र में मनाये जाने वाला यह पर्व आज विश्वव्यापी है। यूं तो साल में तीन बार हरेला पर्व मनाया जाता है, लेकिन सावन मास की शुरुआत में मनाये जाने वाले इस पर्व का विशेष महत्व है। सावन यानी हरियाली की शुरुआत। हरियाली यानी सुख-समृद्धि। इस शुरुआत पर हरेला का त्योहार मनाकर हम जहां अपने परिवेश में खुशहाली की कामना करते हैं, वहीं दूर देश में जा बसे अपने अपनों की भी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। बहनें चहकती हैं कि भाई को आशीर्वचन स्वरूप हरेला लगाएंगे यानी उनके सिर पर उन पौधों को रखेंगे जो उन्होंने कुछ दिन पहले बोये थे और आज (सावन माह की पहली तिथि) को काटकर उनकी पूजा-अर्चना कर अब सिर में रखने के लिए बड़े जतन से पूजा की थाल में रखे हैं। माएं अपने बच्चों के सिर पर भी इस हरेला को रखती हैं और ढेरों आशीर्वाद देती हैं। हरेला लगाते वक्त यानी हरेले को सिर पर आशीर्वाद स्वरूप रखते हुए कहा जाता है-

जी रया जागि रया, यो दिन यो मास भेंटने रया दुब जस पनपी जाया,

आकाश जस उच्च, धरती जस चकाव है जाया, सिंह तराण, स्याव जस बुद्धि हो,

हिमाव में ह्ंयू रुण तलक गंग-जमुन में पाणि रुण तलक जी रया जागि रया।

यानी लंबी उम्र की कामना। दूब की तरह पनपते रहने का आशीर्वाद। शरीर सौष्ठव, लंबी उम्र का आशीर्वाद।

कोरोना के इस कालखंड में हम सब लोगों को एक-दूसरे की मदद तो करनी ही है, एक दूसरे के लिए ऐसी ही कामनाएं भी करनी हैं तभी हम इस महामारी से पार पा पाएंगे। असल में हरेला का त्योहार हमें साथ-साथ बने रहने की सीख देता है। साथ-साथ मन से। दूर देश में भी कोई व्यक्ति है तो उसके लिए भी मन से कामना। कई घरों में जो बच्चे बाहर रहते हैं, उनके नाम से भी पूजा की जाती है।

उत्तराखण्ड के कई पर्व हैं जिनमें खेती-बाड़ी पशुपालन का भाव होता है। लोक में व्याप्त इस महत्वपूर्ण अवधारणा को धरातल में साकार रूप प्रदान करने की दृष्टि से ही सम्भवतः हरेला पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हरेला जैसा पर्व ही अनेक जगह नवरात्र के समय भी मनाया जाता है। यूं भी इन दिनों भी एक नवरात्र चल रही हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। उमंग और उत्साह के साथ मनाये जाने वाले इस ऋतु पर्व का विशेष महत्व है।

कब होती है शुरुआत

कुमाऊं अंचल में हरेला पर्व सावन मास के प्रथम दिन मनाया जाता है। बता दें कि उत्तराखंड में सौरपक्षीय पंचांग का चलन होने से ही यहां संक्रांति से नए माह की शुरुआत मानी जाती है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है, लेकिन विशेष महत्व सावन वाले हरेला का ही है। परम्परा के अनुसार हरेला पर्व से नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की टोकरियों में हरेला बोया जाता है। इनमें पांच, सात अथवा नौ प्रकार के धान्य जैसे कि-धान, मक्का, तिल, उरद, गहत,  भट्ट, जौं सरसों के बीजों को बोया जाता है। घर के मंदिर में रखकर इन टोकरियां को रोज सबेरे पूजा करते समय जल के छींटां से सींचा जाता है। दो-तीन दिनों में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण का आकार पा लेते हैं। हरेला पर्व की पूर्व सन्ध्या पर इन तृणों की लकड़ी की पतली टहनी से गुड़ाई करने के बाद इनका विधिवत पूजन किया जाता है। जन मान्यतानुसार हिमालय के कैलाश पर्वत में शिव पार्वती का वास माना जाता है।  इस धारणा के कारण हरेले से एक दिन पहले कुछ इलाकों में शिव परिवार की मूर्तियां भी बनाने की परम्परा दिखती हैं। इन मूर्तियां को यहां डिकारे कहा जाता है।

आज के दौर में अपनी मान्यताओं और परंपराओं के गूढ़ रहस्य को और भी समझना आवश्यक है। पहले सावन मास से ही चातुर्मास शुरू हो जाता है, इसमें यात्राओं पर तो प्रतिबंध होता ही था, तामसिक चीजों के सेवन पर भी रोक थी। आज इन बातों का वैज्ञानिक आधार भी है। इसलिए परंपराओं के वैज्ञानिक आधार को समझिए। त्योहार के मर्म को समझते हुए आइये इस पवित्र त्योहार पर हम सभी मिलकर सबकी खुशहाली की कामना करें और दुआ करें कि महामारी का प्रकोप जल्दी खत्म हो।

सोमवार, 12 जुलाई 2021

पुस्तक समीक्षा : असफलता के प्रेरक सबक


साभार : दैनिक ट्रिब्यून

केवल तिवारी

लेखक शाम लाल मेहता की किताब ‘हार से आंखें मिलाना...’ असफलता से सबक सीखने को प्रेरित करती है। असफलता किसी और को उत्तरदायी ठहराने या खिसियाने के लिए नहीं है। उनकी किताब के दो-तीन प्रमुख प्रसंग देखिए ‘कोई भी बाधा इतनी समर्थ नहीं कि आत्मविश्वास के बढ़ते कदमों को रोक सके, और कोई भी पराजय इतनी बड़ी नहीं हो सकती जो निष्ठावान योद्धा का सिर झुका सके। हमारा भय ही असफलताओं का पोषण करके उनको शक्तिमान बनाता है।’ ऐसे ही एक अन्य जगह लिखा है, ‘असफलता ब्रह्मांड के किसी अज्ञात अंधेरे कोने से एकाएक टूट पड़ने वाली विपत्ति नहीं बल्कि प्रकृति के कारण और परिणाम के कालजयी स्थापित नियम के अंतर्गत मिलने वाला हमारे कार्यों का परिणाम है।’ दरअसल, महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ‘आप जो पाना चाहते हैं वह कोरी कल्पना की बात न हो और पूरे विश्वास के साथ उसे पाने का प्रयास किया जाये, तभी सफलता मिलती है।’ शाम लाल मेहता की इस किताब में उदाहरणों के साथ बेहतरीन ढंग से समझाया गया है कि कैसे असफलता और सफलता के बीच तनिक-सा फासला होता है।

किताब में बीच-बीच में पंचतंत्र, वेदवाणी, महान विचारकों-चिंतकों के कोट्स को भी दिया गया है। लेखक ने एक रोचक अधिकार यानी ‘असफलता के अधिकार’ का भी जिक्र किया है। लेखक ने विभिन्न उदाहरणों के जरिये बताया है कि संघर्ष के बिना मिली सफलता घातक है। दृढ़ इच्छाशक्ति सर्वशक्तिमान है। किताब में समझाने की कोशिश की गयी है कि कठिनाइयां बाधक नहीं, साधक हैं।

पुस्तक : हार से आंखें मिलाना लेखक : शाम लाल मेहता प्रकाशक : आस्था प्रकाशन, नयी दिल्ली एवं सिरसा पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 195.