शनिवार, 6 अगस्त 2022

रक्षाबंधन और मुहूर्त : वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल ने दूर की भ्रम की स्थिति

राहुल देव 
सावन का महीना कई अर्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तो इस महीने विवाहितएं अपने पीहर जाती हैं और सखियों संग झूला झूलती हैं। अठखेलियां करती हैं। इसके अलावा भी सावन के पवित्र महीने में शिव शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं,आध्यात्मिकता भी है और धार्मिक भावनाएं भी हैं। सावन के महीने का समापन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते वाला रक्षाबंधन पर्व के साथ होता ह। रक्षाबंधन का पर्व समय-समय पर कई चीजों की यादों को समेटे हुए हैं। इसमें कुछ कुछ परिवर्तन भी होता रहा है। भाई बहन के अलावा रक्षा सूत्र ब्राह्मण द्वारा बांधा जाना या अपने प्रकृति के प्रति रक्षा की भावना रखना, पर्यावरण को स्वच्छ रखना ऐसे ही अनेक कारण इस पवित्र त्यौहार के पीछे हैं। इसके अलावा भी सावन के महीने में खानपान का एक अलग अंदाज रहता है। मीठा ज्यादा खाया जाता है...
खैर इन सब बातों से इतर हम आते हैं रक्षाबंधन पर। जैसा कि कई बार होता है त्यौहार की असली तिथि यानी तारीख को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। रक्षा बंधन के संबंध में उत्पन्न भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करते हुए वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल का कहना है कि रक्षा बंधन सदैव श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है और पूर्णिमा उस दिन 18 से 24 घड़ी या अपराह्न व्यापनी होनी चाहिए, जोकि इस वर्ष 11 अगस्त को 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 12 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। किंतु पूर्णिमा तिथि शुरू लगते ही भद्रा शुरू होगी जो रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, भद्रा के साए में राखी बांधना कष्टदायक हो सकता है। अति आवश्यक होने पर 11 अगस्त को भद्रा पूंछ या दुम के समय 5:18 से 6:18 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है अन्यथा 11अगस्त को 8:54 रात्रि से 9:50 रात्रि तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद 12 अगस्त को सूर्य उदय समय से 7:05 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है। वेदमाता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के व्यवस्थापक एडवोकेट राहुल देव मुदगल ने बताया कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा पर वेदमाता गायत्री की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। उन्होंने बताया इसके अलावा भी शक्तिपीठ में विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए पूजा अर्चना के साथ साथ संस्कार संबंधी सुविचारों के आयोजन होते हैं।

रविवार, 17 जुलाई 2022

सेवा भाव, सेवा धाम, खेतीबाड़ी और प्राकृतिक चिकित्सा...

 केवल तिवारी

ये बच्चे कम से कम गैंगस्टर तो नहीं बनेंगे। पंक्तिबद्ध होकर जमीन में बिछी चटाई पर बैठकर भोजन के वक्त उक्त वाक्य अनायास ही साथ बैठे हमारे मित्र के मुंह से निकला। सचमुच, यह बात तो सही लग रही थी। जिस सेवाभाव से युवा वहां भोजन परोसने में लगे थे। जगह-जगह उनके द्वारा बनाए गए पोस्टर दिख रहे थे और अनुशासन का जो नजारा दिख रहा था, उससे यह बात तो तय थी कि ये बच्चे संस्कार सीख रहे हैं और संस्कारी व्यक्ति अपराध की ओर उन्मुख नहीं हो सकता। असल में पिछले माह हरियाणा के समालखा स्थित पट्टी कल्याणा सेवा धाम में ऐसा नजारा दिखा। सेवाधाम का विस्तृत परिसर में अभी काफी काम निर्माणाधीन है, लेकिन जो क्षेत्र बन गया है, वह भी अद्भुत है।

यहां पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बताया कि शिक्षा वर्ग में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली पांचों राज्यों के 308 स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस सेवाधाम में पहुंचने के बाद वहां का नजारा एकदम अलग नजर आया। आधुनिक तरीके से परंपरागत खेती का नजारा, किसानों को प्रशिक्षण देने की योजना का विस्तार और भी बहुत कुछ जानने को मिला। खैर.. वहां बताया गया कि संघ आज भी व्यक्ति निर्माण के कार्य में ही लगा हुआ है। इस तरह के संघ शिक्षा वर्गों से निर्मित स्वयंसेवक समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर समाज निर्माण और राष्टï्र जीवन को सुखी बनाने का काम करते हैं। जैसे श्रमिकों के क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ, कृषि क्षेत्र में भारतीय किसान संघ, विद्यार्थियों के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, धार्मिक क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद, सामाजिक समरसता में भारत विकास परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम आदि इस प्रकार से 30 ऐसे अखिल भारतीय संगठन समाज के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब भी समाज पर कोई आपदा या संकट आते हैं तो संघ के स्वयंसेवक मदद के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े हुए हैं। जैसे 1947 में विभाजन के समय लाखों हिंदू और सिख परिवारों को सुरक्षित बचा कर भारत लेकर आए। बताया गया कि उस वक्त 35 कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई कि वे वहां फंसे हिंदुओं और सिखों को निकालने तक वहीं रहें। गुरु जी के निर्देश पर उन्होंने बखूबी अपना काम निभाया, लेकिन बाद में उन कार्यकर्ताओं का पता नहीं चल पाया। उनकी सहायता के लिए पंजाब रिलीफ कमेटी बनाकर उनके रहने, खाने व दवाइयों का इंतजाम किया। आंध्रप्रदेश में तूफान आया तो वहां भी स्वयंसेवकों ने सेवा कार्य किए। तूफान में मारे गए हजारों लोगों की लाशें वहां पड़ी थी, उन सभी का अंतिम संस्कार किया। इसी प्रकार गुजरात के भूकंप के दौरान भी सेवा कार्यों के लिए सबसे पहले स्वयंसेवक ही आगे आए थे। 1975 में उस समय की सरकार ने देश में आपातकाल लगाकर तानाशाही थौंपने का प्रयास किया था। उस समय भी स्वयंसेवकों ने जन जागरण व सत्याग्रह दोनों काम किए और देश में फिर से प्रजातंत्र बहाल करवाने का कार्य किया। पंजाब में आतंकवाद के दौरान स्वयंसेवकों ने देश की एकता व अखंडता के लिए अनेक बलिदान दिए और आपसी भाईचारा बना कर रखा। कश्मीर में आतंकवाद हुआ, वहां भी कश्मीरी हिंदुओं की सहायता की। तुरंत प्रभाव से जम्मू-कश्मीर समिति का गठन कर पीडि़तों की सहायता की। 1995 में हरियाणा के डबवाली में अग्नि कांड हुआ तो वहां भी स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी आग में फंसे हुए बच्चों को बचाया। उन्होंने बताया कि इस प्रकार देशभर में स्वयंसेवकों द्वारा सवा लाख सेवा कार्य चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्रांतों में भी अपने सेवा कार्य चला रहे हैं। जैसे कि यह सेवा साधना केंद्र जहां हम बैठे हैं वह भी बन रहा है। इस सेवा केंद्र में भी कई तरह के सेवा कार्य चल रहे हैं। इसके साथ-साथ संघ के स्वयंसेवकों द्वारा धर्म जागरण, ग्राम विकास, गौसेवा, परिवार प्रबोधन, सामाजिक समरस्ता और पर्यावरण 6 प्रकार की गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं। इन सभी गतिविधियों के माध्यम से राष्टï्र जीवन को सुखी बनाने का कार्य चल रहा है। रामेश्वर दास ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से आह्वान करते हुए कहा कि वह भी संघ के कार्य को समझें और संघ द्वारा संचालित किसी भी सेवा के कार्य से जुड़कर समाज सेवा में अपना योगदान दें। वर्ग कार्यवाह डॉ. चंद्रप्रकाश ने बताया कि इस 20 दिवसीय वर्ग में पांच राज्यों से 308 स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इनको प्रशिक्षण देने के लिए 38 शिक्षक व अन्य प्रबंधन के लिए 25 प्रबंधकों ने वर्ग में अपना सहयोग किया। कार्यक्रम में बतौर प्रशिक्षक पहुंचे हमीरपुर एनआईटी में असिस्टेंट प्रोफेसर चंद्रप्रकाश जी से भी सार्थक बातचीत हुई। चंद्रप्रकाश जी के पास हिमाचल प्रदेश के प्रांत सहकार्यवाह की जिम्मेदारी है। उन्होंने बहुत सधे अंदाज में संघ के क्रियाकलापों के बारे में बताया।

मशरूम उपजने का ‘सीधा प्रसारण




वहां खेती प्रशिक्षण के लिए बने विस्तृत क्षेत्र में से एक भाग देखा मशरूम के तैयार होने का। यहां बाहार एक मशीन के जरिये खाद में मशरूम के बीज डालकर तैयार हो रहे थे। बताया गया कि पराली से खाद का निर्माण हो रहा है। खाद बनने की प्रक्रिया को भी देखा और सुखद लगा यह सुनकर अब यहां आसपास के इलाके की सारी पराली यहां खप जाती है। गौर हो कि पराली जलाने के कारण प्रदूषण के कारण होने वाली परेशानियों से हम सब लोग पिछले कई वर्षों से रू-ब-रू होते रहे हैं। मशरूम तैयार करने के काम में जुटे लोगों ने पूरे प्रोसेस को समझाया और दिखाया। ऑर्गेनिक तरीके से मशरूम तैयार करने का यह नजारा हम में से अनेक लोगों ने पहली बार देखा। अलग-अलग तापमान में इन्हें रखने से लेकर पैकिंग तक। यह नजारा अद्भुत रहा। इसके अलावा वहां मौजूद लोगों ने बताया कि कैसे ककड़ी, खीरा, तरबूज अदि की भी ऑर्गेनिक तरीके से खेती हो रही है और खेती-बाड़ी के नये अंदाज में पारंपरिक तरीके को लेकर आसपास के किसानों के प्रशिक्षण का काम जल्दी शुरू होगा।

और प्राकृतिक चिकित्सा का वह नजारा

डाक्टर विकास सक्सेना

पट्टी कल्याणा पहुंचे ही थे तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र तो जाना बनता ही था। यहां के गांधी स्मारिक निधि केंद्र में स्थिति प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के मुख्य चिकित्सक डॉ. विकास सक्सेना से बातचीत हुई। उन्होंने बहुत अपनेपन और बेहद सरल अंदाज में प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व को समझाया। साथ ही बताया कि दिल्ली-एनसीआर से ज्यादातर मरीज ओवरवेट की शिकायत लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति में ही हमारे शरीर के विकारों को दूर करने के उपाय छिपे हैं, बस जरूरत है उन्हें पहचानने की। उन्होंने बताया कि अनेक लोग महीनेभर उस चिकित्सा केंद्र में रहकर स्वस्थ होकर गए हैं। हमारी कई तरह की जिज्ञासाओं को उन्होंने शांत किया और उनके पास आए अनेक मरीजों से भी मिलने का मौका मिला। विकास सक्सेना जी से यूट्यूब के जरिये भी रू-ब-रू होते रहते हैं। डॉक्टर साहब का धन्यवाद। साथ ही धन्यवाद उन सभी वरिष्ठों का, जो इस यात्रा के माध्यम बने।


बुधवार, 5 जनवरी 2022

बहुत खास है 21वीं सदी का यह 22वां साल

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून


आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत के लिए साल 2022 कई मामलों में अहम है। महामारी की चुनौतियों से जूझ रहे देश के सामने कई परियोजनाओं का खाका तैयार है और सियासत का मैदान भी काफी विस्तारित है।

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लीजिए एक और नया साल शुरू हो गया। लगभग वैसे ही खौफ के साये में जैसा दो दिन पहले ही खत्म हुए साल की शुरुआत में था। हां, हालात थोड़े बदले हैं। टीकाकरण जारी है। भयावहता कम लग रही है और उम्मीद की जा रही है कि महामारी का विकराल रूप कुंद पड़ जाएगा। गतिशील है समय, इसलिए दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे। लेकिन हर जाने वाले साल के साथ जुड़ जाती हैं कुछ यादें और नए साल से जुड़ती हैं उम्मीदें। उम्मीदें व्यक्ति विशेष के लिए। समाज के लिए और देश के लिए। भूलना, याद रखना, सुख और दुख पर बहुत बातें हो गयी हैं। नए साल में तो बहुत कुछ होगा। सियासत के गलियारों में भी और सत्ता के गलियारों में भी। परियोजनाओं के स्तर पर भी। इनमें से कुछ के लिए गतिविधियां चालू हैं और कुछ के लिए शुरू होंगी। आइये हम जानते हैं कि वर्ष 2022 में हमारे देश के लिए सात महत्वपूर्ण मसलों को।

सवाल सात सरकारों का

सबसे अहम घटनाक्रम है सात राज्यों में चुनाव का। इनमें से शुरू के तीन महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनाव हो जाएंगे। इसी के साथ साल खत्म होते-होते हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के लिए या तो चुनाव हो जाएंगे या चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। सियासी गतिविधियां तो सभी राज्यों में तेजी से चल पड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि इन 7 राज्यों में से 6 में अभी केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकारें हैं। बेशक अभी चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि सबकुछ सामान्य रहा तो इसी महीने घोषणा हो सकती है। राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव के अलवा अप्रैल से जुलाई के बीच में राज्यसभा की 73 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव भी होने हैं। यह संख्या 245 सदस्यों वाली राज्यसभा की करीब 1 तिहाई सीटों के बराबर है। इस दौरान राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों में आनंद शर्मा, एके एंटनी, सुब्रमण्यम स्वामी, सुरेश प्रभु, एमजे अकबर, निर्मला सीतारमण, जयराम रमेश, पी चिदंबरम, पीयूष गोयल, प्रफुल्ल पटेल, संजय राउत, कपिल सिब्बल, अंबिका सोनी और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दिग्गज शामिल हैं।

अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कौन?

बेशक विधानसभा चुनावों के शोर में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी चर्चा ज्यादा सुनाई न पड़ रही हो, लेकिन सियासी दलों के शीर्ष नेतृत्व में मंथन शुरू हो चुका है। यह तो तय है कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास बहुमत है, ऐसे में दोनों पदों पर उन्हीं के प्रत्याशी की जीत लगभग तय है, लेकिन मंथन नाम पर चल रहा है। विभिन्न गलियारों में लगाए जा रहे कयासों में कुछ का आकलन है कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को राष्ट्रपति पद के लिए सत्ताधारी दल उतार सकता है। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान ऐसा कई बार हुआ जब उपराष्ट्रपति को ही राष्ट्रपति के लिए निर्वाचित किया गया। भारतीय गणतंत्र के 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मंथन कुछ महीनों में ही जोर पकड़ेगा। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2022 को पूरा हो जाएगा। नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा होगा। अब तक की परंपरा के मुताबिक भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के अलावा कोई भी लगातार दो बार इस पद पर नहीं रहा। इसी तरह डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं हामिद अंसारी के बाद कोई भी दो बार उपराष्ट्रपति नहीं बना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति कोविंद आगामी अक्तूबर में 76 वर्ष के हो जाएंगे। उधर, नायडू अभी 73 वर्ष के होंगे। यानी भाजपा की 75 साल वाली नीति से छोटे। देखना होगा कि उन्हें दोबारा मौका दिया जाता है, राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया जाता है या फिर हर बार चौंकाने वाले फैसले लेने वाली मोदी सरकार कुछ और करती है।

राम मंदिर और सेंट्रल विस्टा

आस्था और सियासी दृष्टि से बेहद अहम भगवान श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य अयोध्या में बहुत तेजी से चल रहा है। इसके पहले चरण का काम पूरा हो चुका है। इसी महीने से मंदिर के दूसरे चरण का काम शुरू होगा। यूं तो कहा जा रहा है कि मंदिर का संपूर्ण निर्माण कार्य अगले साल यानी 2023 के अंत तक पूरा होगा, लेकिन जिस गति से काम चल रहा है, उससे उम्मीद यही जताई जा रही है कि इसी साल के अंत तक इसका एक भव्य प्रारूप सामने आ जाएगा। यह भी बताया गया कि पूरे परिसर में सिर्फ 30 प्रतिशत का ही निर्माण होगा जबकि 70 प्रतिशत मंदिर खुला और ग्रीन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में निर्माण कार्यों का जायजा भी ले रहे हैं। वैसे पूरा निर्माण इसके लिए बनाए गए ट्रस्ट की देखरेख में हो रहा है। पिछले दिनों आसपास की जमीन खरीद मसले को विपक्ष ने जोरदार तरीके से उठाया जिसकी जांच के आदेश दिए गए हैं।

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर भी काम तेजी से चल रहा है। इसकी डेडलाइन इसी साल अक्तूबर है। कोविड के दौरान भी यहां दिन-रात काम चलता रहा, जिस पर विपक्ष ने हंगामा किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। बताया जा रहा है कि यहां करीब 5000 मजदूर 24 घंटे निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इस संबंध में रोचक जानकारी यह भी कि सेंट्रल विस्टा (नए संसद भवन) में इस्तेमाल होने वाले सामान को बनाने का काम देश के 20 शहरों में चल रहा है। मथुरा में लाल पत्थर तरोश जा रहे हैं धौलपुर में पीले पत्थर। निर्माण में लकड़ी नागपुर से कांट-छांट के बाद आ रही है तो पेंडुलम कोलकाता में तैयार हो रहा है। नए संसद भवन में ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि लोकसभा में 888 सदस्य और राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकें। यह भविष्य में सीटों के परिसीमन एवं बदलाव को ध्यान में रखकर किया गया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रात में अचानक निर्माण स्थल के दौरे ने इस कयास को और बल दिया है कि तय समय से पहले-पहले सेंट्रल विस्टा बन जाएगा।

हां जी, अब 5जी

सूचना तकनीक में तो पिछले कुछ समय से क्रांति आ गयी है। कहां एक समय लैंड लाइन होना भी स्टेटस सिंबल होता था, कहां आज करोड़ों हाथों में ‘हाई स्पीड इंटरनेट’ वाला मोबाइल है। चलता-फिरता कंप्यूटर की तरह। लैंड लाइन और मोबाइल फोन की शुरुआत के बीच में बेहद छोटा समय पेजर का आया। लेकिन पेजर युग आंधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया। मोबाइल फोन की ऐसी क्रांति आई कि पहले 2जी फिर 3जी और 4जी के आते ही 5जी के लिए कवायद तेज हो गयी। यहां ‘जी’ से मतलब जनरेशन से है। अभी हम मोबाइल के चौथे जनरेशन में जी रहे हैं और बस इसी साल पांचवे जनरेशन वाला फोन उपलब्ध हो जाएगा। जहां तक हाईस्पीड इंटरनेट के साथ 4जी तकनीक का सवाल है, इसे सबसे पहले रिलायंस ने लॉन्च किया, या यूं कहें कि वह आया ही 4जी तकनीक के साथ। उसने कुछ महीने फ्री में इंटरनेट क्या उपलब्ध कराया, इंटरनेट उपलब्धता को लेकर सभी कंपनियों ने दाम गिराए। केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को जैसे ही 5जी ट्रायल की अनुमति दी, उन्होंने इसके लिए कदम आगे बढ़ा दिए। बताते हैं कि एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने इसके लिए टेस्टिंग भी कर ली है। बेशक यह तकनीक लोगों को कई सुविधाएं दे रही हैं, लेकिन समय-समय पर पर्यावरणविद इसके खतरों के प्रति भी आगाह करते रहते हैं। बताया जा रहा है कि 5जी तकनीक आने के बाद कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, यातायात प्रबंधन, स्मार्ट सिटी के कई एप की लंबी रेंज आमजन के सुलभ होगी। इसके अलावा डिजिटल ट्रांजेक्शन को और सरल और सुविधाजनक बनाया जाएगा। एक ओर जहां निजी दूरसंचार कंपनियां 5जी नेटवर्क के साथ लगभग तैयार हैं, वहीं सरकार ने पूरे मसले की तकनीकी बारीकी के लिए आईआईटी बांबे, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर, आईआईएससी बेंगलुरू, सोसायटी फॉर एप्लॉयड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च और सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन वायरलेस टेक्नोलॉजी को लगाया है।

नयी शिक्षा नीति का क्रियान्वयन

नयी शिक्षा नीति के पक्ष-विपक्ष में बातें उठतीं, इसके किंतु-परंतु को समझा जाता, उसी दौरान कोविड महामारी ने शिक्षा प्रणाली के अब तक के ढर्रे को ही बदल दिया। ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ चीजें हो पाईं, कुछ नहीं हुईं और कुछ अलहदा हुईं। फिर भी नयी शिक्षा नीति 2020 पर काम शुरू हो चुका है। यूं तो लक्ष्य रखा गया है कि 2030 तक स्कूली शिक्षा में सौ प्रतिशत जीईआर के साथ पूर्व विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय तक शिक्षा का सार्वभौमीकरण किया जाएगा। वैसे इसमें चिकित्सा ज्ञान एवं विधि की पढ़ाई को अलग रखा गया है। इससे पहले पहले 10+2 के पैटर्न को बदलकर 5+3+3+4 का पैटर्न फॉलो किया जाना है। इस संबंध में कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गोवा सरकार ने टास्क फोर्स बनाया है। पहले एनसीसी 12वीं तक की पढ़ाई के दौरान लिए जाने का प्रावधान था जिसे अब विश्वविद्यालय स्तर तक शुरू किया गया है। इसके साथ ही कई तरह के परिवर्तन किए गए हैं जिनमें से भाषा संबंधी परिवर्तन भी है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनायी गयी थी, जिसमें 1992 में कुछ संशोधन किया गया था। कोविड के दौरान ही शिक्षा नीति के मसौदे पर सुझाव मांगे गए। शिक्षा मंत्रालय को इस संबंध में सात हजार से ज्यादा सुझाव मिले हैं। बेशक अभी कुछ आपत्तियां हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि करीब तीन दशकों बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है जो युवाओं को रोजगारोन्मुखी बनाएगी। इस नीति को पूरी तरह लागू होने के बाद देखना होगा कि इससे कितना फर्क पड़ा है। साथ ही यह भी कि इस साल यानी 2022 में इस नीति में और क्या परिवर्तन होते हैं।

 उत्तर और पूर्वोत्तर में सबसे ऊंचे पुल

तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर में दो सर्वाधिक ऊंचे पुलों का निर्माण बहुत तेजी से जारी है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल ये पुल बनकर तैयार हो जाएंगे। इनमें से एक तो है 111 किलोमीटर लंबी जिरीबम-इंफाल नयी रेलवे लाइन। कहा जा रहा है कि मणिपुर की नोनी पहाड़ी घाटी में बन रहा यह पुल दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा। वैसे इंफाल से इसके जुड़ने की डेडलाइन अगले साल यानी 2023 है, वैसे इसका एक हिस्सा इस साल पूरा हो जाएगा।

इसी तरह भारत के उत्तर में यानी जम्मू-कश्मीर में भी एक सर्वाधिक ऊंचा पुल बन रहा है। यह पुल चिनाब नदी के ऊपर बन रहा है। कुछ समय पहले ही पुल का आर्क बनकर तैयार हो चुका है। बताया जा रहा है कि इस पुल की ऊंचाई एफिल टावर से भी 35 मीटर अधिक है। यह एक नदी के ऊपर और पहाड़ पर बनने वाला सर्वाधिक ऊंचा पुल होगा। इस पुल की डेडलाइन बीते साल दिसंबर में ही थी, लेकिन कुछ काम अभी इसमें बाकी है जो संभवत: जल्दी ही तैयार हो जाएगा। सुरक्षा के लिहाज से इस पुल में रोप-वे लिफ्ट की सुविधा भी होगी और सेंसर लगे होंगे, ताकि किसी भी प्रकार की खराबी आने पर तुरंत पता लग जाएगा।

पड़ोसियों से संबंध पर नजर

साल 2022 इस दृष्टि से भी अहम होगा कि भारत का अपने पड़ोसियों से कैसे संबंध रहते हैं। खासतौर से चीन और पाकिस्तान से। यहां उल्लेखनीय है कि कोविड के दौरान जहां समूचा विश्व महामारी से निपटने के उपायों पर लगा था, वहीं चीन गलवान घाटी में अलग ही खेल खेल रहा था। इसी तरह पाकिस्तान से घुसपैठ भी जारी थी। भारत ने दोनों ही मोर्चों पर डटकर मुकाबला किया, लेकिन चुनौतियां अभी बरकरार हैं। इस साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बैठकें होनी हैं। जाहिर है इन बैठकों में विस्तारवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दे भी उठेंगे। देखना होगा कि यह साल पड़ोसियों से रिश्तों के मामले में कैसा रहेगा?

- प्रस्तुति : फीचर डेस्क