शनिवार, 6 अगस्त 2022

रक्षाबंधन और मुहूर्त : वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल ने दूर की भ्रम की स्थिति

राहुल देव 
सावन का महीना कई अर्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तो इस महीने विवाहितएं अपने पीहर जाती हैं और सखियों संग झूला झूलती हैं। अठखेलियां करती हैं। इसके अलावा भी सावन के पवित्र महीने में शिव शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं,आध्यात्मिकता भी है और धार्मिक भावनाएं भी हैं। सावन के महीने का समापन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते वाला रक्षाबंधन पर्व के साथ होता ह। रक्षाबंधन का पर्व समय-समय पर कई चीजों की यादों को समेटे हुए हैं। इसमें कुछ कुछ परिवर्तन भी होता रहा है। भाई बहन के अलावा रक्षा सूत्र ब्राह्मण द्वारा बांधा जाना या अपने प्रकृति के प्रति रक्षा की भावना रखना, पर्यावरण को स्वच्छ रखना ऐसे ही अनेक कारण इस पवित्र त्यौहार के पीछे हैं। इसके अलावा भी सावन के महीने में खानपान का एक अलग अंदाज रहता है। मीठा ज्यादा खाया जाता है...
खैर इन सब बातों से इतर हम आते हैं रक्षाबंधन पर। जैसा कि कई बार होता है त्यौहार की असली तिथि यानी तारीख को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। रक्षा बंधन के संबंध में उत्पन्न भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करते हुए वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल का कहना है कि रक्षा बंधन सदैव श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है और पूर्णिमा उस दिन 18 से 24 घड़ी या अपराह्न व्यापनी होनी चाहिए, जोकि इस वर्ष 11 अगस्त को 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 12 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। किंतु पूर्णिमा तिथि शुरू लगते ही भद्रा शुरू होगी जो रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, भद्रा के साए में राखी बांधना कष्टदायक हो सकता है। अति आवश्यक होने पर 11 अगस्त को भद्रा पूंछ या दुम के समय 5:18 से 6:18 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है अन्यथा 11अगस्त को 8:54 रात्रि से 9:50 रात्रि तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद 12 अगस्त को सूर्य उदय समय से 7:05 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है। वेदमाता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के व्यवस्थापक एडवोकेट राहुल देव मुदगल ने बताया कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा पर वेदमाता गायत्री की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। उन्होंने बताया इसके अलावा भी शक्तिपीठ में विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए पूजा अर्चना के साथ साथ संस्कार संबंधी सुविचारों के आयोजन होते हैं।

रविवार, 17 जुलाई 2022

सेवा भाव, सेवा धाम, खेतीबाड़ी और प्राकृतिक चिकित्सा...

 केवल तिवारी

ये बच्चे कम से कम गैंगस्टर तो नहीं बनेंगे। पंक्तिबद्ध होकर जमीन में बिछी चटाई पर बैठकर भोजन के वक्त उक्त वाक्य अनायास ही साथ बैठे हमारे मित्र के मुंह से निकला। सचमुच, यह बात तो सही लग रही थी। जिस सेवाभाव से युवा वहां भोजन परोसने में लगे थे। जगह-जगह उनके द्वारा बनाए गए पोस्टर दिख रहे थे और अनुशासन का जो नजारा दिख रहा था, उससे यह बात तो तय थी कि ये बच्चे संस्कार सीख रहे हैं और संस्कारी व्यक्ति अपराध की ओर उन्मुख नहीं हो सकता। असल में पिछले माह हरियाणा के समालखा स्थित पट्टी कल्याणा सेवा धाम में ऐसा नजारा दिखा। सेवाधाम का विस्तृत परिसर में अभी काफी काम निर्माणाधीन है, लेकिन जो क्षेत्र बन गया है, वह भी अद्भुत है।

यहां पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बताया कि शिक्षा वर्ग में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली पांचों राज्यों के 308 स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस सेवाधाम में पहुंचने के बाद वहां का नजारा एकदम अलग नजर आया। आधुनिक तरीके से परंपरागत खेती का नजारा, किसानों को प्रशिक्षण देने की योजना का विस्तार और भी बहुत कुछ जानने को मिला। खैर.. वहां बताया गया कि संघ आज भी व्यक्ति निर्माण के कार्य में ही लगा हुआ है। इस तरह के संघ शिक्षा वर्गों से निर्मित स्वयंसेवक समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर समाज निर्माण और राष्टï्र जीवन को सुखी बनाने का काम करते हैं। जैसे श्रमिकों के क्षेत्र में भारतीय मजदूर संघ, कृषि क्षेत्र में भारतीय किसान संघ, विद्यार्थियों के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, धार्मिक क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद, सामाजिक समरसता में भारत विकास परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम आदि इस प्रकार से 30 ऐसे अखिल भारतीय संगठन समाज के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब भी समाज पर कोई आपदा या संकट आते हैं तो संघ के स्वयंसेवक मदद के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े हुए हैं। जैसे 1947 में विभाजन के समय लाखों हिंदू और सिख परिवारों को सुरक्षित बचा कर भारत लेकर आए। बताया गया कि उस वक्त 35 कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई कि वे वहां फंसे हिंदुओं और सिखों को निकालने तक वहीं रहें। गुरु जी के निर्देश पर उन्होंने बखूबी अपना काम निभाया, लेकिन बाद में उन कार्यकर्ताओं का पता नहीं चल पाया। उनकी सहायता के लिए पंजाब रिलीफ कमेटी बनाकर उनके रहने, खाने व दवाइयों का इंतजाम किया। आंध्रप्रदेश में तूफान आया तो वहां भी स्वयंसेवकों ने सेवा कार्य किए। तूफान में मारे गए हजारों लोगों की लाशें वहां पड़ी थी, उन सभी का अंतिम संस्कार किया। इसी प्रकार गुजरात के भूकंप के दौरान भी सेवा कार्यों के लिए सबसे पहले स्वयंसेवक ही आगे आए थे। 1975 में उस समय की सरकार ने देश में आपातकाल लगाकर तानाशाही थौंपने का प्रयास किया था। उस समय भी स्वयंसेवकों ने जन जागरण व सत्याग्रह दोनों काम किए और देश में फिर से प्रजातंत्र बहाल करवाने का कार्य किया। पंजाब में आतंकवाद के दौरान स्वयंसेवकों ने देश की एकता व अखंडता के लिए अनेक बलिदान दिए और आपसी भाईचारा बना कर रखा। कश्मीर में आतंकवाद हुआ, वहां भी कश्मीरी हिंदुओं की सहायता की। तुरंत प्रभाव से जम्मू-कश्मीर समिति का गठन कर पीडि़तों की सहायता की। 1995 में हरियाणा के डबवाली में अग्नि कांड हुआ तो वहां भी स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी आग में फंसे हुए बच्चों को बचाया। उन्होंने बताया कि इस प्रकार देशभर में स्वयंसेवकों द्वारा सवा लाख सेवा कार्य चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्रांतों में भी अपने सेवा कार्य चला रहे हैं। जैसे कि यह सेवा साधना केंद्र जहां हम बैठे हैं वह भी बन रहा है। इस सेवा केंद्र में भी कई तरह के सेवा कार्य चल रहे हैं। इसके साथ-साथ संघ के स्वयंसेवकों द्वारा धर्म जागरण, ग्राम विकास, गौसेवा, परिवार प्रबोधन, सामाजिक समरस्ता और पर्यावरण 6 प्रकार की गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं। इन सभी गतिविधियों के माध्यम से राष्टï्र जीवन को सुखी बनाने का कार्य चल रहा है। रामेश्वर दास ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से आह्वान करते हुए कहा कि वह भी संघ के कार्य को समझें और संघ द्वारा संचालित किसी भी सेवा के कार्य से जुड़कर समाज सेवा में अपना योगदान दें। वर्ग कार्यवाह डॉ. चंद्रप्रकाश ने बताया कि इस 20 दिवसीय वर्ग में पांच राज्यों से 308 स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इनको प्रशिक्षण देने के लिए 38 शिक्षक व अन्य प्रबंधन के लिए 25 प्रबंधकों ने वर्ग में अपना सहयोग किया। कार्यक्रम में बतौर प्रशिक्षक पहुंचे हमीरपुर एनआईटी में असिस्टेंट प्रोफेसर चंद्रप्रकाश जी से भी सार्थक बातचीत हुई। चंद्रप्रकाश जी के पास हिमाचल प्रदेश के प्रांत सहकार्यवाह की जिम्मेदारी है। उन्होंने बहुत सधे अंदाज में संघ के क्रियाकलापों के बारे में बताया।

मशरूम उपजने का ‘सीधा प्रसारण




वहां खेती प्रशिक्षण के लिए बने विस्तृत क्षेत्र में से एक भाग देखा मशरूम के तैयार होने का। यहां बाहार एक मशीन के जरिये खाद में मशरूम के बीज डालकर तैयार हो रहे थे। बताया गया कि पराली से खाद का निर्माण हो रहा है। खाद बनने की प्रक्रिया को भी देखा और सुखद लगा यह सुनकर अब यहां आसपास के इलाके की सारी पराली यहां खप जाती है। गौर हो कि पराली जलाने के कारण प्रदूषण के कारण होने वाली परेशानियों से हम सब लोग पिछले कई वर्षों से रू-ब-रू होते रहे हैं। मशरूम तैयार करने के काम में जुटे लोगों ने पूरे प्रोसेस को समझाया और दिखाया। ऑर्गेनिक तरीके से मशरूम तैयार करने का यह नजारा हम में से अनेक लोगों ने पहली बार देखा। अलग-अलग तापमान में इन्हें रखने से लेकर पैकिंग तक। यह नजारा अद्भुत रहा। इसके अलावा वहां मौजूद लोगों ने बताया कि कैसे ककड़ी, खीरा, तरबूज अदि की भी ऑर्गेनिक तरीके से खेती हो रही है और खेती-बाड़ी के नये अंदाज में पारंपरिक तरीके को लेकर आसपास के किसानों के प्रशिक्षण का काम जल्दी शुरू होगा।

और प्राकृतिक चिकित्सा का वह नजारा

डाक्टर विकास सक्सेना

पट्टी कल्याणा पहुंचे ही थे तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र तो जाना बनता ही था। यहां के गांधी स्मारिक निधि केंद्र में स्थिति प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के मुख्य चिकित्सक डॉ. विकास सक्सेना से बातचीत हुई। उन्होंने बहुत अपनेपन और बेहद सरल अंदाज में प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व को समझाया। साथ ही बताया कि दिल्ली-एनसीआर से ज्यादातर मरीज ओवरवेट की शिकायत लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति में ही हमारे शरीर के विकारों को दूर करने के उपाय छिपे हैं, बस जरूरत है उन्हें पहचानने की। उन्होंने बताया कि अनेक लोग महीनेभर उस चिकित्सा केंद्र में रहकर स्वस्थ होकर गए हैं। हमारी कई तरह की जिज्ञासाओं को उन्होंने शांत किया और उनके पास आए अनेक मरीजों से भी मिलने का मौका मिला। विकास सक्सेना जी से यूट्यूब के जरिये भी रू-ब-रू होते रहते हैं। डॉक्टर साहब का धन्यवाद। साथ ही धन्यवाद उन सभी वरिष्ठों का, जो इस यात्रा के माध्यम बने।


बुधवार, 5 जनवरी 2022

बहुत खास है 21वीं सदी का यह 22वां साल

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून


आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत के लिए साल 2022 कई मामलों में अहम है। महामारी की चुनौतियों से जूझ रहे देश के सामने कई परियोजनाओं का खाका तैयार है और सियासत का मैदान भी काफी विस्तारित है।

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लीजिए एक और नया साल शुरू हो गया। लगभग वैसे ही खौफ के साये में जैसा दो दिन पहले ही खत्म हुए साल की शुरुआत में था। हां, हालात थोड़े बदले हैं। टीकाकरण जारी है। भयावहता कम लग रही है और उम्मीद की जा रही है कि महामारी का विकराल रूप कुंद पड़ जाएगा। गतिशील है समय, इसलिए दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे। लेकिन हर जाने वाले साल के साथ जुड़ जाती हैं कुछ यादें और नए साल से जुड़ती हैं उम्मीदें। उम्मीदें व्यक्ति विशेष के लिए। समाज के लिए और देश के लिए। भूलना, याद रखना, सुख और दुख पर बहुत बातें हो गयी हैं। नए साल में तो बहुत कुछ होगा। सियासत के गलियारों में भी और सत्ता के गलियारों में भी। परियोजनाओं के स्तर पर भी। इनमें से कुछ के लिए गतिविधियां चालू हैं और कुछ के लिए शुरू होंगी। आइये हम जानते हैं कि वर्ष 2022 में हमारे देश के लिए सात महत्वपूर्ण मसलों को।

सवाल सात सरकारों का

सबसे अहम घटनाक्रम है सात राज्यों में चुनाव का। इनमें से शुरू के तीन महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनाव हो जाएंगे। इसी के साथ साल खत्म होते-होते हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के लिए या तो चुनाव हो जाएंगे या चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। सियासी गतिविधियां तो सभी राज्यों में तेजी से चल पड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि इन 7 राज्यों में से 6 में अभी केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकारें हैं। बेशक अभी चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि सबकुछ सामान्य रहा तो इसी महीने घोषणा हो सकती है। राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव के अलवा अप्रैल से जुलाई के बीच में राज्यसभा की 73 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव भी होने हैं। यह संख्या 245 सदस्यों वाली राज्यसभा की करीब 1 तिहाई सीटों के बराबर है। इस दौरान राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों में आनंद शर्मा, एके एंटनी, सुब्रमण्यम स्वामी, सुरेश प्रभु, एमजे अकबर, निर्मला सीतारमण, जयराम रमेश, पी चिदंबरम, पीयूष गोयल, प्रफुल्ल पटेल, संजय राउत, कपिल सिब्बल, अंबिका सोनी और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दिग्गज शामिल हैं।

अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कौन?

बेशक विधानसभा चुनावों के शोर में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी चर्चा ज्यादा सुनाई न पड़ रही हो, लेकिन सियासी दलों के शीर्ष नेतृत्व में मंथन शुरू हो चुका है। यह तो तय है कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास बहुमत है, ऐसे में दोनों पदों पर उन्हीं के प्रत्याशी की जीत लगभग तय है, लेकिन मंथन नाम पर चल रहा है। विभिन्न गलियारों में लगाए जा रहे कयासों में कुछ का आकलन है कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को राष्ट्रपति पद के लिए सत्ताधारी दल उतार सकता है। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान ऐसा कई बार हुआ जब उपराष्ट्रपति को ही राष्ट्रपति के लिए निर्वाचित किया गया। भारतीय गणतंत्र के 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मंथन कुछ महीनों में ही जोर पकड़ेगा। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2022 को पूरा हो जाएगा। नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा होगा। अब तक की परंपरा के मुताबिक भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के अलावा कोई भी लगातार दो बार इस पद पर नहीं रहा। इसी तरह डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं हामिद अंसारी के बाद कोई भी दो बार उपराष्ट्रपति नहीं बना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति कोविंद आगामी अक्तूबर में 76 वर्ष के हो जाएंगे। उधर, नायडू अभी 73 वर्ष के होंगे। यानी भाजपा की 75 साल वाली नीति से छोटे। देखना होगा कि उन्हें दोबारा मौका दिया जाता है, राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया जाता है या फिर हर बार चौंकाने वाले फैसले लेने वाली मोदी सरकार कुछ और करती है।

राम मंदिर और सेंट्रल विस्टा

आस्था और सियासी दृष्टि से बेहद अहम भगवान श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य अयोध्या में बहुत तेजी से चल रहा है। इसके पहले चरण का काम पूरा हो चुका है। इसी महीने से मंदिर के दूसरे चरण का काम शुरू होगा। यूं तो कहा जा रहा है कि मंदिर का संपूर्ण निर्माण कार्य अगले साल यानी 2023 के अंत तक पूरा होगा, लेकिन जिस गति से काम चल रहा है, उससे उम्मीद यही जताई जा रही है कि इसी साल के अंत तक इसका एक भव्य प्रारूप सामने आ जाएगा। यह भी बताया गया कि पूरे परिसर में सिर्फ 30 प्रतिशत का ही निर्माण होगा जबकि 70 प्रतिशत मंदिर खुला और ग्रीन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में निर्माण कार्यों का जायजा भी ले रहे हैं। वैसे पूरा निर्माण इसके लिए बनाए गए ट्रस्ट की देखरेख में हो रहा है। पिछले दिनों आसपास की जमीन खरीद मसले को विपक्ष ने जोरदार तरीके से उठाया जिसकी जांच के आदेश दिए गए हैं।

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर भी काम तेजी से चल रहा है। इसकी डेडलाइन इसी साल अक्तूबर है। कोविड के दौरान भी यहां दिन-रात काम चलता रहा, जिस पर विपक्ष ने हंगामा किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। बताया जा रहा है कि यहां करीब 5000 मजदूर 24 घंटे निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इस संबंध में रोचक जानकारी यह भी कि सेंट्रल विस्टा (नए संसद भवन) में इस्तेमाल होने वाले सामान को बनाने का काम देश के 20 शहरों में चल रहा है। मथुरा में लाल पत्थर तरोश जा रहे हैं धौलपुर में पीले पत्थर। निर्माण में लकड़ी नागपुर से कांट-छांट के बाद आ रही है तो पेंडुलम कोलकाता में तैयार हो रहा है। नए संसद भवन में ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि लोकसभा में 888 सदस्य और राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकें। यह भविष्य में सीटों के परिसीमन एवं बदलाव को ध्यान में रखकर किया गया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रात में अचानक निर्माण स्थल के दौरे ने इस कयास को और बल दिया है कि तय समय से पहले-पहले सेंट्रल विस्टा बन जाएगा।

हां जी, अब 5जी

सूचना तकनीक में तो पिछले कुछ समय से क्रांति आ गयी है। कहां एक समय लैंड लाइन होना भी स्टेटस सिंबल होता था, कहां आज करोड़ों हाथों में ‘हाई स्पीड इंटरनेट’ वाला मोबाइल है। चलता-फिरता कंप्यूटर की तरह। लैंड लाइन और मोबाइल फोन की शुरुआत के बीच में बेहद छोटा समय पेजर का आया। लेकिन पेजर युग आंधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया। मोबाइल फोन की ऐसी क्रांति आई कि पहले 2जी फिर 3जी और 4जी के आते ही 5जी के लिए कवायद तेज हो गयी। यहां ‘जी’ से मतलब जनरेशन से है। अभी हम मोबाइल के चौथे जनरेशन में जी रहे हैं और बस इसी साल पांचवे जनरेशन वाला फोन उपलब्ध हो जाएगा। जहां तक हाईस्पीड इंटरनेट के साथ 4जी तकनीक का सवाल है, इसे सबसे पहले रिलायंस ने लॉन्च किया, या यूं कहें कि वह आया ही 4जी तकनीक के साथ। उसने कुछ महीने फ्री में इंटरनेट क्या उपलब्ध कराया, इंटरनेट उपलब्धता को लेकर सभी कंपनियों ने दाम गिराए। केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को जैसे ही 5जी ट्रायल की अनुमति दी, उन्होंने इसके लिए कदम आगे बढ़ा दिए। बताते हैं कि एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने इसके लिए टेस्टिंग भी कर ली है। बेशक यह तकनीक लोगों को कई सुविधाएं दे रही हैं, लेकिन समय-समय पर पर्यावरणविद इसके खतरों के प्रति भी आगाह करते रहते हैं। बताया जा रहा है कि 5जी तकनीक आने के बाद कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, यातायात प्रबंधन, स्मार्ट सिटी के कई एप की लंबी रेंज आमजन के सुलभ होगी। इसके अलावा डिजिटल ट्रांजेक्शन को और सरल और सुविधाजनक बनाया जाएगा। एक ओर जहां निजी दूरसंचार कंपनियां 5जी नेटवर्क के साथ लगभग तैयार हैं, वहीं सरकार ने पूरे मसले की तकनीकी बारीकी के लिए आईआईटी बांबे, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर, आईआईएससी बेंगलुरू, सोसायटी फॉर एप्लॉयड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च और सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन वायरलेस टेक्नोलॉजी को लगाया है।

नयी शिक्षा नीति का क्रियान्वयन

नयी शिक्षा नीति के पक्ष-विपक्ष में बातें उठतीं, इसके किंतु-परंतु को समझा जाता, उसी दौरान कोविड महामारी ने शिक्षा प्रणाली के अब तक के ढर्रे को ही बदल दिया। ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ चीजें हो पाईं, कुछ नहीं हुईं और कुछ अलहदा हुईं। फिर भी नयी शिक्षा नीति 2020 पर काम शुरू हो चुका है। यूं तो लक्ष्य रखा गया है कि 2030 तक स्कूली शिक्षा में सौ प्रतिशत जीईआर के साथ पूर्व विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय तक शिक्षा का सार्वभौमीकरण किया जाएगा। वैसे इसमें चिकित्सा ज्ञान एवं विधि की पढ़ाई को अलग रखा गया है। इससे पहले पहले 10+2 के पैटर्न को बदलकर 5+3+3+4 का पैटर्न फॉलो किया जाना है। इस संबंध में कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गोवा सरकार ने टास्क फोर्स बनाया है। पहले एनसीसी 12वीं तक की पढ़ाई के दौरान लिए जाने का प्रावधान था जिसे अब विश्वविद्यालय स्तर तक शुरू किया गया है। इसके साथ ही कई तरह के परिवर्तन किए गए हैं जिनमें से भाषा संबंधी परिवर्तन भी है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनायी गयी थी, जिसमें 1992 में कुछ संशोधन किया गया था। कोविड के दौरान ही शिक्षा नीति के मसौदे पर सुझाव मांगे गए। शिक्षा मंत्रालय को इस संबंध में सात हजार से ज्यादा सुझाव मिले हैं। बेशक अभी कुछ आपत्तियां हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि करीब तीन दशकों बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है जो युवाओं को रोजगारोन्मुखी बनाएगी। इस नीति को पूरी तरह लागू होने के बाद देखना होगा कि इससे कितना फर्क पड़ा है। साथ ही यह भी कि इस साल यानी 2022 में इस नीति में और क्या परिवर्तन होते हैं।

 उत्तर और पूर्वोत्तर में सबसे ऊंचे पुल

तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर में दो सर्वाधिक ऊंचे पुलों का निर्माण बहुत तेजी से जारी है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल ये पुल बनकर तैयार हो जाएंगे। इनमें से एक तो है 111 किलोमीटर लंबी जिरीबम-इंफाल नयी रेलवे लाइन। कहा जा रहा है कि मणिपुर की नोनी पहाड़ी घाटी में बन रहा यह पुल दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा। वैसे इंफाल से इसके जुड़ने की डेडलाइन अगले साल यानी 2023 है, वैसे इसका एक हिस्सा इस साल पूरा हो जाएगा।

इसी तरह भारत के उत्तर में यानी जम्मू-कश्मीर में भी एक सर्वाधिक ऊंचा पुल बन रहा है। यह पुल चिनाब नदी के ऊपर बन रहा है। कुछ समय पहले ही पुल का आर्क बनकर तैयार हो चुका है। बताया जा रहा है कि इस पुल की ऊंचाई एफिल टावर से भी 35 मीटर अधिक है। यह एक नदी के ऊपर और पहाड़ पर बनने वाला सर्वाधिक ऊंचा पुल होगा। इस पुल की डेडलाइन बीते साल दिसंबर में ही थी, लेकिन कुछ काम अभी इसमें बाकी है जो संभवत: जल्दी ही तैयार हो जाएगा। सुरक्षा के लिहाज से इस पुल में रोप-वे लिफ्ट की सुविधा भी होगी और सेंसर लगे होंगे, ताकि किसी भी प्रकार की खराबी आने पर तुरंत पता लग जाएगा।

पड़ोसियों से संबंध पर नजर

साल 2022 इस दृष्टि से भी अहम होगा कि भारत का अपने पड़ोसियों से कैसे संबंध रहते हैं। खासतौर से चीन और पाकिस्तान से। यहां उल्लेखनीय है कि कोविड के दौरान जहां समूचा विश्व महामारी से निपटने के उपायों पर लगा था, वहीं चीन गलवान घाटी में अलग ही खेल खेल रहा था। इसी तरह पाकिस्तान से घुसपैठ भी जारी थी। भारत ने दोनों ही मोर्चों पर डटकर मुकाबला किया, लेकिन चुनौतियां अभी बरकरार हैं। इस साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बैठकें होनी हैं। जाहिर है इन बैठकों में विस्तारवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दे भी उठेंगे। देखना होगा कि यह साल पड़ोसियों से रिश्तों के मामले में कैसा रहेगा?

- प्रस्तुति : फीचर डेस्क

बुधवार, 10 नवंबर 2021

गांव-गांव पहुंचानी होगी बैंकिंग... धन्यवाद शाखा प्रबंधक

 मुनस्यारी से वरिष्ठ पत्रकार पूरन पांडे

राष्ट्रीयकृत बैंकों के जरिये हमें अभी भी गांव-गांव पहुंचने की जरूरत है ताकि लोगों को बैंकिंग समझ आ सके और समय-समय पर मिलने वाले लोन एवं अन्य योजनाओं के बारे में लोगों को पता चल सके। यही नहीं दूर दराज के गांवों खासतौर पर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में तो ऐसी व्यवस्था की बहुत आवश्यकता है। यह कहना था अनेक बुद्धिजीवियों, वरिष्ठों एवं आमलोगों का। मौका था भारतीय स्टेट बैंक की मुनस्यारी शाखा की ओर से विकास खण्ड के जैती गांव में बैंक की विभिन्न सेवाओं को जन जन तक पहुंचाने के लिए आयोजित कैम्प का। इस मौके पर लोगों ने एसबीआई की संबंधित शाखा प्रबंधक की तारीफ इसलिए की कि उनके द्वारा नित नयी योजनाओं के बारे में पता चलता है। यही नहीं बैंक के वरिष्ठ अधिकारी जहां लोन आदि के बारे में बताते हैं वहीं इस बारे में भी जागरूक करते हैं कि जितना संभव हो लोन की वापसी भी समय पर कर देनी चाहिए।


बुधवार को आयोजित इस कैंप में शाखा प्रबंधक वरुण गुप्ता ने बैंक द्वारा प्रदत्त विभिन्न सेवाओं के लाभ के बारे में लोगों को अवगत कराया। इस दौरान प्रधानमंत्री द्वारा घोषित जन सुरक्षा योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए वरुण गुप्ता ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना एवं अटल पेंशन योजना के बारे में विस्तारपूर्वक लोगों को बताया।


वहां मौजूद कई लोगों ने बताया कि इस कैम्प के बाद लोगों में इन योजनाओं को लेकर जानकारी बढ़ी है तथा अधिकाधिक लोग इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए तत्पर दिखे। इसके साथ ही शाखा प्रबंधक ने बैंक में पहले से मौजूद विभिन्न ऋण योजनाओं के बारे में लोगों को बताया और बताया कि किस प्रकार से स्वरोजगार और कृषि उत्पादन करने वाले लोग आर्थिक सहायता, ऋण के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि लिया हुआ ऋण समय पर बैंक को लौटाएं जिससे और ज़रूरतमंद लोगों की सहायता की जा सके और मौजूदा ऋणी को भी आगे ऋण सहायता मिलती रहे। उन्होंने बताया कि यदि अपरिहार्य कारणों से ऋणी ऋण नहीं चुका पाते हैं तो बैंक उनको रीशेड्यूलिंग के माध्यम से या अभी चल रही ऋण समाधान योजना के माध्यम से सहायता करने का प्रयास करेगा।


कैम्प में उप प्रबंधक विश्वानसु साही भी उपस्थित रहे और उन्होंने इसी कैम्प में ही अनेक केसीसी ऋणों का नवीनीकरण भी किया। ग्राम प्रधान महेश कुमार ने इस कैम्प की सराहना की और बताया कि इस तरह का यह पहला कैम्प इस गांव में लगा है और इसके लगने से लोगों में बैंक के प्रति जागरूकता बढ़ी है। कैंप में उपस्थित लोगों में गांव के ही कमलेश कुमार, पार्वती देवी, देवकी देवी, भवानी देवी, रमेशआदि उपस्थित रहे और सभी ने शाखा प्रबंधक वरुण गुप्ता की अगुवाई में भारतीय स्टेट बैंक, मुनस्यारी शाखा की सराहना की। लोगों ने कहा कि बैंकों में ऐसे ही अधिकारियों को होना चाहिए जो मसलों का हल तो यथाशीघ्र करें ही, साथ ही समय-समय पर आने वाली योजनाओं के बारे में भी लोगों को बता सकें।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए व्यापक अभियान की जरूरत





कोरोना का खौफ कुछ कम हुआ तो अब जगह-जगह से डेंगू एवं तेज बुखार से लोगों के बीमार होने एवं कई लोगों की मौत की दुखद खबरें सुनने को मिल रही हैं। ऐसे में डॉक्टरों, विशेषज्ञों का कहना है कि हमें किसी खास सीजन में ही नहीं, बल्कि सालभर इम्युनिटी बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। इसके साथ ही जागरूकता अभियान भी चलाए जाने की जरूरत है। यह बात माउंटेन पीपुल फाउंडेशन (एमपीएफ) की अध्यक्ष सरोज पंत ने उस वक्त कही जब उन्होंने इस संबंध में यूपी के मुख्य सचिव एवं प्रधान सचिव (आयुष मंत्रालय) से मुलाकात की। उनके साथ ही संस्था से जुड़े एवं इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे उमेश पंत भी थे। जानकारों ने कहा कि एलोपैथी दवाओं से तात्कालिक फायदे के साथ ही होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक दवाओं या इम्युनिटी बूस्टर से भी हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा कर सकते हैं। संस्था ने होमियोपैथी और योग विज्ञान के द्वारा रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के विभिन्न प्रयोगों पर भी बल दिया। इस संबंध में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये बताया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजीव कुमार तिवारी तथा प्रिंसीपल सेक्रेटरी (आयुष विभाग) प्रशांत त्रिवेदी जी के साथ माउंटेन पीपुल फाउंडेशन की अध्यक्ष सरोज पंत तथा डॉ. उमेश चंद्र पंत ने होमियोपैथी के द्वारा रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर तथा होमियोपैथिक पद्धति के द्वारा  कोविड-19 एवं डेंगू के लिए प्रीवेंटिव व इम्यूनिटी बूस्टर दवा जिले और प्रदेश स्तर पर मुहैया कराने की मुहिम के बारे में चर्चा की।
जनसेवा में लगे हैं डॉ पंत
डॉ उमेश पंत एवं सरोज पंत लंबे समय से जनसेवा में लगे हैं। गाजियाबाद के वसुंधरा स्थित सेक्टर पांच में वह लंबे समय से रह रहे हैं। शिक्षा पूरी करने के बाद उमेश ने यहीं होमियोपैथी पद्धति से इलाज करना सीखा और बाकायदा डिग्री ली। उधर, संस्था एमपीएफ को पिछले दिनों उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत के उपराष्ट्रपति ने सम्मानित किया। डॉ पंत का कहना है, 'आज के दौर में हमें एक दूसरे की मदद के लिए आगे आना चाहिए। इसके साथ ही हर किसी को यह समझना होगा कि जान है तो जहान है। इसलिए स्वस्थ रहें। होमियोपैथी पद्धति से यदि किसी रोग का समय पर उपचार शुरू हो जाए तो उसके बहुत फायदे हैं।' उनके इस कार्य को काफी सराहना मिल रही है।

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

हंसते-कूदते दिखे बच्चे : तस्वीर तो सुखद है, नजर न लगे

केवल तिवारी बृहस्पतिवार 19 अगस्त, 2021 को ऑफिस आते वक्त किसी को ड्रॉप करने थोड़ा आगे तक जाना पड़ा। ट्रिब्यून चौक से कोई चार चौक और आगे। लौटते वक्त कई जगह बच्चे दिखे। स्कूली बच्चे। ज्यादातर शायद 9वीं से 11वीं या 12वीं तक के बच्चे होंगे। कहीं वे हंस रहे हैं, कहीं साइकिल से रेस कर रहे हैं और कहीं पैदल चलते हुए किसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं। उन्हीं में से कुछ बच्चे बस या ऑटो में बैठने के लिए दौड़ भी रहे हैं। बहुत दिनों बाद दिखी ऐसी तस्वीर। बड़ा अच्छा लगा। मैं ऑफिस के लिए चला आ रहा था और पता नहीं क्यों मेरी नजर हर बार बच्चों पर ही चली जाती थी। हर चौक के पास। अलग-अलग ड्रेस में। जब ऑफिस के गेट पर पहुंचा तो वहां कई बच्चे बाहर लगे वाटर कूलर से बोटल में पानी भर रहे थे। एक-दो बच्चे वहीं पानी पी भी रहे थे। कंधे पर बैग टंगे हुए। पास में साइकिल खड़ी। एक साइकिल में दो-तीन बच्चे। मुझे पुराने दिन याद आ गये। लखनऊ मांटेसरी स्कूल में हम साथी लोग भी साइकिल से जाते थे। कई बार साइकिल नहीं होती तो कभी मित्र विमल तो कभी कोई और तेलीबाग तक छोड़ जाते। कई बार हम लोग भी एमईएस (MES) के दफ्तर में जाकर ठंडा पानी पीते। कभी बेर तोड़ने लग जाते और कभी-कभी इमली भी तोड़ते। रास्ते में कैंट एरिया में ड्यूटी पर तैनात किसी फौजी को सैल्यूट कर देते। हमारे लिए यह सब मजाक था, लेकिन फौजी भी कभी-कभी गजब के होते। वे हमारे सैल्यूट का जोरदार तरीके से जवाब देते और हंस देते। एक-दो बार डांट भी पड़ी। खैर... आज बहुत दिनों बाद बच्चों की ऐसी टोलियां देखकर बहुत प्रसन्नता मिली। देख रहा था कि कुछ दिनों से कोरोना महामारी की खबरें भी मीडिया में हाशिये पर हैं। कई अखबारों में तो पहले पन्ने से गायब हैं। चैनल्स में भी लीड स्टोरी की तरह कोरोना की खबर नहीं है। मुंबई में कई फिल्मों की शूटिंग शुरू हो चुकी है। टीवी पर नये-नये शोज आने लगे हैं। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में साप्ताहिक बाजारों को लगाने की अनुमति दे दी गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात सुधरेंगे। याद है ना महामारी की दूसरी लहर। इस कोरोना की दूसरी लहर ने तो हिलाकर रख दिया। भतीजे बिपिन का जाना तो सचमुच अनर्थ सा लगा। अब भी लगता है जैसे वह अचानक कहीं से आ जाएगा। ऐसे ही कई मित्र गये। प्रशांत चला गया। हिंदुस्तान अखबार में हमारे वरिष्ठ रहे और हमेशा मार्गदर्शन करने वाले दिनेश तिवारी जी चले गये। राजीव कटारा जी चले गये, शेष नारायण सिंह जी चले गये। ऐसे कई अन्य हम उम्र, मुझसे छोटे पत्रकार और जानकार बंधु चले गये। खौफ का वह मंजर अब भी रौंगटे खड़े कर देता है। अब तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। साथ ही यह भी चेतावनी है कि बच्चों पर ज्यादा असर पड़ सकता है। कुछ दिन पहले एक सुखद संभावना थी कि हो सकता है कि तीसरी लहर न ही आये। ईश्वर से दुआ है कि अब बस हो। कोरोना का क्रंदन अब नहीं सुना जा सकेगा। हमें भी ध्यान रखना होगा। मैंने जैसा कि कुछ बच्चों से भी कहा, बच्चो स्कूल जाओ, अच्छा लग रहा है, लेकिन मास्क पहना करो। बच्चे तो बच्चे। मैं पहले से कहता रहा हूं कि बहुत मुश्किल है उन्हें ऐसी बंधनाओं में बांधना। मुझे याद है छोटे बेटे को जब बाहर जाने से रोकता था तो वह परेशान हो जाता। एक दिन तो मुझे भी अजीब लगा जब उसने आंगन के पास बाहर जाने के लिए दरवाजे पर खड़े होकर कहा, ‘पापा बाहर नहीं जाऊंगा, लेकिन जो बच्चे खेल रहे हैं, यहां खड़े होकर उनकी आवाज सुनता रहूं।’ ईश्वर कोरोना का खौफ अब न आये। हंसी-खुशी स्कूल आते-जाते बच्चों की इस तस्वीर पर किसी की नजर न लगे।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

ओलंपिक में भारत के सितारे

साभार : दैनिक ट्रिब्यून www.dainiktribuneonline.com हमारे ओलंपिक सितारे कोरोना महामारी के चलते एक साल बाद हुए ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि मुश्किल हालात भी उन्हें डिगा नहीं सकते। टोक्यो में खेलों के इस महाकुंभ के दौरान तिरंगा शान से लहराया। जीत की नयी इबारत लिखी गयी जो भविष्य के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी। ओलंपिक 2020 के इन महानायकों का लंबा सफर कई पड़ावों और विभिन्न तरह के अनुभवों से गुज़रा है। देश का नाम रोशन करने वाले इन बड़े खिलाड़ियों से परिचय करा रहे हैं केवल तिवारी नीरज चोपड़ा वज़न कम करने की जद्दोजहद में थाम लिया भाला किसान के बेटे हैं। संयुक्त परिवार है। हरियाणा के पानीपत स्थित खांद्रा गांव के मूल निवासी हैं। खेलों में मिली उपलब्धि के बाद राजपूताना राइफल्स में सूबेदार बने। टोक्यो ओलंपिक के इस गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। नीरज बचपन में बहुत मोटे थे। वज़न कम कराने के लिए परिवार के लोगों ने कई जतन किए। उन्हें खूब दौड़ाया जाता था। उनके चाचा भीम चोपड़ा उन्हें गांव से काफी दूर शिवाजी स्टेडियम लेकर गये। दौड़ने-भागने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखने वाले नीरज को स्टेडियम में भाला फेंक का अभ्यास करते हुए खिलाड़ी दिखे तो बस उसी खेल में आगे बढ़ने की ठान ली। परिवार ने साथ दिया और आज नीरज ने इतिहास रच दिया। वह देश के लिए व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले पहले ट्रैक एंड फील्ड एथलीट हैं। नीरज ने अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी के साथ पहला स्थान हासिल कर गोल्ड अपने नाम किया। वह 2016 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर -20 विश्व रिकॉर्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वर्ष 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 2017 एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया था। बेटे की उपलब्धि पर पिता सतीश चोपड़ा कहते हैं, ‘खुशियों को शब्दों में बयां करना मुश्किल है। हम चार भाई हैं। नीरज भाग्यशाली रहा कि उसे पूरे परिवार का समर्थन मिला।’ मां सरोज कहती हैं, ‘नीरज सभी की उम्मीदों पर खरा उतरा और भारत का गौरव बढ़ाया।’ चाचा भीम चोपड़ा कहते हैं, ‘खिलाड़ी की कड़ी मेहनत और मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ परिवार का समर्थन और अच्छे संस्कार भी महत्वपूर्ण होते हैं। नीरज के पास ये सब हैं और वह सफल हुआ।’ मीराबाई चानू सपने तीरंदाजी के और बन गयीं वेट लिफ्टर मणिपुर की रहने वाली मीराबाई छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और कद की भी छोटी हैं। इम्फाल से करीब 20 किलोमीटर दूर उनका गांव नोंगपोक काकजिंग है। पहाड़ी इलाकों के जीवन की तरह इनका बचपन भी कठिन परिस्थितियों वाला रहा। चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी काटना और भोजन बनाने एवं पीने के लिए दूर-दराज से पानी भरकर लाना ही इनकी दिनचर्या थी। हां दिली रुझान खेलों के प्रति था। वह तीरंदाज बनना चाहती थी, लेकिन वेट लिफ्टर कुंजरानी के बारे में सुना तो इसी में आगे बढ़ने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और रविवार 8 अगस्त को अपना जन्मदिन एक शानदार जश्न के साथ मनाया। हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था। स्पोर्ट्स अकादमी घर से बहुत दूर थी। ट्रक में लिफ्ट लेकर वह जातीं, खूब पसीना बहातीं और वापस आकर घर के काम भी निपटातीं। तभी तो जब वह टोक्यो से लौटीं तो ट्रक ड्राइवर के लिए विशेष भोज का इंतजाम किया। बचपन से ही कड़ी मेहनत करने वाली चानू का जोश और जज्बा आखिरकार रंग लाया। टोक्यो ओलंपिक में पहले ही दिन पदक तालिका में भारत का नाम अंकित करा दिया था। उन्होंने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतकर भारोत्तोलन में पदक के 21 साल के सूखे को खत्म किया। इस 26 साल की खिलाड़ी ने कुल 202 किलो भार उठाया। वह ओलंपिक मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला भारोत्तोल्लक हैं। मीराबाई चानू के बारे में प्रसिद्ध है कि वह अपने बैग में हमेशा देश की मिट्टी रखती हैं। पीवी सिंधु 8 साल की उम्र से ही खेलने लगीं बैडमिंटन महज 8 साल की उम्र में बैडमिंटन थाम लिया था। शौकिया खेल की तरह नहीं, जूनून के साथ। जुनून तो होना ही था। आखिर परिवार में माहौल ही खेल और खिलाड़ी का था। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु के पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खेल चुके हैं। मां तो अर्जुन अवार्डी हैं। बैडमिंटन पर अपना अलग स्टाइल बना चुकीं पीवी सिंधु का जोश और जज्बा ही था कि ओलंपिक में इनके जाने पर ही पदक की उम्मीद बंध चुकी थी और हुआ भी वैसा ही। इस 26 साल की खिलाड़ी ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था। वह ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली देश की पहली महिला और कुल दूसरी खिलाड़ी हैं। हैदराबाद की इस खिलाड़ी ने 2014 में विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी। पूरी दुनिया में स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी के तौर पर ख्याति पा चुकीं पीवी सिंधु को अब तक कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। बचपन से ही बैडमिंटन खेल रहीं सिंधु ने तब और दृढ़ संकल्प ले लिया जब 2001 में पुलेला गोपीचंद ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप का खिताब जीते। सिंधु ने अपनी पहली ट्रेनिंग सिकंदराबाद में महबूब खान की देखरेख में शुरू की थी। इसके बाद सिंधु गोपीचंद की अकादमी से जुड़कर बैडमिंटन के गुर सीखने लगीं। कई अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश का नाम रोशन कर चुकीं सिंधु प्रसन्न रहकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहने को ही सफलता की सही डगर मानती हैं। रवि दहिया पिता की मेहनत पर जड़ दी चांदी हरियाणा का एक और कामयाब छोरा। सोनीपत का गांव नाहरी, मूल निवास। किसान परिवार। पिता राकेश कुमार ने रवि कुमार दहिया को 12 साल की उम्र में ही दिल्ली स्थित छत्रसाल स्टेडियम भेज दिया। बेशक आर्थिक तंगी थी, लेकिन पिता ने रवि पर पूरी ताकत झोंक दी और खुद रोज 60 किलोमीटर की दूरी तय कर बेटे के लिए दूध, मक्खन आदि लेकर जाते। इधर, पिता बेटे को कामयाब देखना चाहते थे और उधर, बेटा भी जी-जान से लगा हुआ था पिता के सपनों को साकार करने में। इरादे पक्के हों तो फिर जीत से कौन रोक सकता है। यही हुआ। रवि कुमार दहिया ने पिता के उस निर्णय को सही साबित कर दिखाया जो उन्होंने बचपन में ही ले लिया था। यानी स्टेडियम भेजकर बच्चे को भविष्य का सफल खिलाड़ी बनाने का फैसला। पिता की मेहनत और रवि की कसरत काम आई और टोक्यो ओलंपिक में रवि ने पुरुषों के 57 किग्रा फ्रीस्टाइल कुश्ती में रजत पदक जीत कर अपनी ताकत और तकनीक का लोहा मनवाया। रवि कुमार दहिया ने वर्ष 2019 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक का टिकट पक्का किया और फिर 2020 में दिल्ली में एशियाई चैम्पियनशिप जीती और अलमाटी में इस साल खिताब का बचाव किया। रवि ने 1982 के एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले सतपाल सिंह से ट्रेनिंग ली है। रवि ने वर्ष 2015 जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप में 55 किलोग्राम कैटेगरी में रजत पदक जीता। वह सेमीफाइनल में चोटिल हो गये थे। उन्हें ठीक होने में करीब एक साल लग गया। फिर 2018 वर्ल्ड अंडर 23 रेसलिंग चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल जीता। यही नहीं कोरोना महामारी से पहले उन्होंने एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। बजरंग पूनिया घुटने की चोट को भुलाया हरियाणा के झज्जर का पहलवान। पहलवानी विरासत में मिली। शादी में आठ फेरे लिए। एक फेरा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नाम। ये बजरंग हैं। बजरंग पूनिया। घुटने में चोट के बावजूद पूरी मुस्तैदी से मुकाबला किया। कांस्य पदक मिला। देश को इस पदक पर गर्व, लेकिन खुद संतुष्ट नहीं। बजरंग पूनिया का टोक्यो का सफर बहुत कठिन रहा। उन्हें स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। बजरंग का कहना है कि वह कुछ दिन आराम करने के बाद एक बार फिर पूरे जोश के साथ भविष्य की प्रतियोगिताओं की तैयारी में खुद को झोंक देंगे। जुनूनी बजरंग ने महज सात साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी। कभी-कभी तो आधी रात को ही उठकर प्रैक्टिस करने लगते। बजरंग का जुनून ही था कि 2008 में अपने से कई किलोग्राम ज्यादा वजनी पहलवान से भिड़ गये और उसे चित्त कर दिया। बचपन से ही बजरंग के पिता जहां उन्हें कुश्ती के दांव सिखाते वहीं आर्थिक तंगी आड़े न आए, इस सोच के साथ काम करते। वह बस का किराया बचाकर साइकिल से अपने काम पर जाते थे। साल 2015 में बजरंग का परिवार सोनीपत में शिफ्ट हो गया, ताकि वह भारतीय खेल प्राधिकरण के सेंटर में ट्रेनिंग कर सकें। असल में बजरंग अभ्यास के लिए रूस गए, जहां एक स्थानीय टूर्नामेंट में उनका घुटना चोटिल हो गया। मीडिया कर्मियों से बातचीत में बजरंग ने कहा, ‘मेरे कोच और फिजियो चाहते थे कि मैं कांस्य मुकाबले में घुटने पर पट्टी बांधकर उतरूं, लेकिन मैं सहज महसूस नहीं कर रहा था। मैंने उनसे कहा कि अगर चोट गंभीर हो जाए तो भी मैं बाद में आराम कर सकता हूं लेकिन अगर मैं अब पदक नहीं जीत पाया तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। इसलिए मैं बिना पट्टी के ही मैट पर उतरा था।’ बजरंग पूनिया ने अब तक कई खिताब जीते हैं। लवलीना बारगोहेन पहले कोरोना को हराया, फिर विश्व चैंपियन को पिता टिकेन बारगोहेन का अपना व्यवसाय। माता मामोनी बारगोहेन हाउस वाइफ। बच्ची ने बचपन में ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मां ने पूरा सपोर्ट किया। पिता ने पैसे की तंगी नहीं आने दी और इस जुनूनी लड़की लवलीना बोरगोहेन ने 23 साल की उम्र में अपने करिअर के पहले ही ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह विजेन्दर सिंह और मैरी कॉम के बाद मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव की लवलीना पहले ‘किक-बॉक्सर’ बनना चाहती थीं। लवलीना और उनकी दो बहनों ने पिता के लिए चाय बागान के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी बहुत सपोर्ट किया। धीरे-धीरे पिता का व्यवसाय अच्छा जम गया और लवलीना के सपनों को पंख लगने लगे। उन्होंने अपने इरादे जाहिर किए और लग गयीं पूरी धुन से। टोक्यो ओलंपिक की तैयारी के लिए उन्हें यूरोप जाना था। कुल 52 दिनों का टूर था। लेकिन ऐन मौके पर कोरोना वायरस से संक्रमित हो गयीं। उन्होंने कोरोनो को मात दी और ऐसी शानदार वापसी की कि 69 किलोग्राम वर्ग में चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैम्पियन निएन-शिन चेन को मात दे दी। असम की इस लड़की के जीवन में भले ही आर्थिक तंगी कभी रोड़ा न बनी हो, लेकिन सामाजिक ताने-बाने से इन्हें कई बार दो-चार होना पड़ा। समाज में कई लोग लड़कियों को आगे बढ़ते नहीं देख सकते थे। लेकिन लवलीना को घरवालों का सपोर्ट मिला तो उन्होंने अपनी ट्रेनिंग शुरू कर दी। मैरीकॉम को अपना आदर्श मानने वाली लवलीना ने आखिरकार खूब मेहनत की और उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता रहा। शुरुआत छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं से हुई और देखते-देखते ओलंपिक तक का पदकीय सफर शानदार रहा। हॉकी हर खिलाड़ी की अपनी खासियत 41 वर्षों का सूखा खत्म किया। बेशक कांस्य ही लपक पाए, लेकिन जो जोश और जज्बा इस टीम ने दिखाया उससे हॉकी का स्वर्णिम भविष्य लिखा जाएगा। यह हॉकी की टीम इंडिया का ही तो कमाल था कि महामारी की उदासी के दौरान टीम का जज्बा सामने आया और हर खेल प्रेमी ने जश्न मनाया। जी हां, यह भारत की हॉकी टीम है। बहुत लंबे अंतराल के बाद हॉकी में भारत को पदक मिला। टीम के प्रत्येक सदस्य को कई राज्य सरकारों एवं संस्थाओं ने सम्मानित करने का फैसला किया है। यूं तो हर भारतीय ने दिल से टीम इंडिया का सम्मान किया है। इस टीम ने ग्रुप चरण के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-7 से बुरी तरह हारने के बाद मनप्रीत सिंह की अगुवाई में शानदार वापसी की। एक बारगी थोड़ा नर्वस हो चुकी टीम ने फिर से हिम्मत बांधी और आगे बढ़ी। पहले सेमीफाइनल में बेल्जियम से हारने के बाद टीम ने कांस्य पदक प्ले ऑफ में जर्मनी को 5-4 से मात दी। यह मात बेहद ऐतिहासिक रही। टोक्यो ओलंपिक में हॉकी की टीम इंडिया ने अपना बेस्ट परफारमेंस दिया। पूरे टूर्नामेंट के दौरान मनप्रीत की प्रेरणादायक कप्तानी के साथ गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने शानदार प्रदर्शन किया। कप्तान ने जहां बेहतरीन रणनीति बनायी वहीं श्रीजेश ने विरोधी टीम की ओर से दागे जा रहे कई महत्वपूर्ण गोल को पहले ही रोककर जीत का रास्ता सुगम किया। इस जीत के साथ ही हॉकी टीम ने पूरे देश में जश्न का माहौल बना दिया। आइये संक्षेप में जानते हैं हॉकी टीम के बारे में- टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह 19 साल की उम्र में ही टीम इंडिया में आ गए थे। वह विरोधी टीम की डिफेंस में सेंध लगाने के लिए जाने जाते हैं। इसी तरह पीआर श्रीजेश गोलकीपर हैं और टीम के सबसे वरिष्ठ खिलाड़ी। उन्होंने पूरे मुकाबले में कई गोल रोके। हरमनप्रीत सिंह रियो ओलंपिक में भी टीम इंडिया के हिस्सा थे। उन्हें पेनाल्टी कॉर्नर एक्सपर्ट माना जाता है। रुपिंदर पाल सिंह की लंबी हाइट का टीम को लाभ मिलता है। हरियाणा के सुरेंद्र कुमार को टीम डिफेंस की रीढ़ माना जाता है। अमित रोहिदास लंबे वक्त तक टीम इंडिया से बाहर रहे, अब शानदार वापसी हुई और जोरदार तरीके से खेल रहे हैं। बिरेंदर लाकरा का यह दूसरा ओलंपिक है। ओडिशा के हैं और हॉकी के ऑल राउंडर माने जाते हैं। हार्दिक सिंह ने इस बार खास पहचान बना ली। प्री-क्वार्टरफाइनल में किया गया हार्दिक का गोल बहुत महत्वपूर्ण था। विवेक सिंह प्रसाद का सबसे कम उम्र में टीम में आने वाले खिलाड़ियों में नाम है। टोक्यो में उन्होंने फॉरवर्ड लाइन का जिम्मा संभाला और टीम का बखूबी साथ दिया। मणिपुर के नीलकांत शर्मा, हरियाणा के सुमित वाल्मीकि, पंजाब के शमशेर सिंह और पंजाब के ही दिलप्रीत सिंह के अलावा गुरजंट सिंह और मनदीप सिंह भी हॉकी टीम इंडिया के अहम खिलाड़ियों में से हैं।