बुधवार, 5 जनवरी 2022

बहुत खास है 21वीं सदी का यह 22वां साल

 साभार : दैनिक ट्रिब्यून


आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत के लिए साल 2022 कई मामलों में अहम है। महामारी की चुनौतियों से जूझ रहे देश के सामने कई परियोजनाओं का खाका तैयार है और सियासत का मैदान भी काफी विस्तारित है।

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लीजिए एक और नया साल शुरू हो गया। लगभग वैसे ही खौफ के साये में जैसा दो दिन पहले ही खत्म हुए साल की शुरुआत में था। हां, हालात थोड़े बदले हैं। टीकाकरण जारी है। भयावहता कम लग रही है और उम्मीद की जा रही है कि महामारी का विकराल रूप कुंद पड़ जाएगा। गतिशील है समय, इसलिए दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे। लेकिन हर जाने वाले साल के साथ जुड़ जाती हैं कुछ यादें और नए साल से जुड़ती हैं उम्मीदें। उम्मीदें व्यक्ति विशेष के लिए। समाज के लिए और देश के लिए। भूलना, याद रखना, सुख और दुख पर बहुत बातें हो गयी हैं। नए साल में तो बहुत कुछ होगा। सियासत के गलियारों में भी और सत्ता के गलियारों में भी। परियोजनाओं के स्तर पर भी। इनमें से कुछ के लिए गतिविधियां चालू हैं और कुछ के लिए शुरू होंगी। आइये हम जानते हैं कि वर्ष 2022 में हमारे देश के लिए सात महत्वपूर्ण मसलों को।

सवाल सात सरकारों का

सबसे अहम घटनाक्रम है सात राज्यों में चुनाव का। इनमें से शुरू के तीन महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनाव हो जाएंगे। इसी के साथ साल खत्म होते-होते हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के लिए या तो चुनाव हो जाएंगे या चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी। सियासी गतिविधियां तो सभी राज्यों में तेजी से चल पड़ी हैं। उल्लेखनीय है कि इन 7 राज्यों में से 6 में अभी केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकारें हैं। बेशक अभी चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि सबकुछ सामान्य रहा तो इसी महीने घोषणा हो सकती है। राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव के अलवा अप्रैल से जुलाई के बीच में राज्यसभा की 73 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव भी होने हैं। यह संख्या 245 सदस्यों वाली राज्यसभा की करीब 1 तिहाई सीटों के बराबर है। इस दौरान राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों में आनंद शर्मा, एके एंटनी, सुब्रमण्यम स्वामी, सुरेश प्रभु, एमजे अकबर, निर्मला सीतारमण, जयराम रमेश, पी चिदंबरम, पीयूष गोयल, प्रफुल्ल पटेल, संजय राउत, कपिल सिब्बल, अंबिका सोनी और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दिग्गज शामिल हैं।

अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कौन?

बेशक विधानसभा चुनावों के शोर में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी चर्चा ज्यादा सुनाई न पड़ रही हो, लेकिन सियासी दलों के शीर्ष नेतृत्व में मंथन शुरू हो चुका है। यह तो तय है कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास बहुमत है, ऐसे में दोनों पदों पर उन्हीं के प्रत्याशी की जीत लगभग तय है, लेकिन मंथन नाम पर चल रहा है। विभिन्न गलियारों में लगाए जा रहे कयासों में कुछ का आकलन है कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को राष्ट्रपति पद के लिए सत्ताधारी दल उतार सकता है। कांग्रेस के शासनकाल के दौरान ऐसा कई बार हुआ जब उपराष्ट्रपति को ही राष्ट्रपति के लिए निर्वाचित किया गया। भारतीय गणतंत्र के 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मंथन कुछ महीनों में ही जोर पकड़ेगा। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2022 को पूरा हो जाएगा। नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा होगा। अब तक की परंपरा के मुताबिक भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के अलावा कोई भी लगातार दो बार इस पद पर नहीं रहा। इसी तरह डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं हामिद अंसारी के बाद कोई भी दो बार उपराष्ट्रपति नहीं बना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति कोविंद आगामी अक्तूबर में 76 वर्ष के हो जाएंगे। उधर, नायडू अभी 73 वर्ष के होंगे। यानी भाजपा की 75 साल वाली नीति से छोटे। देखना होगा कि उन्हें दोबारा मौका दिया जाता है, राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया जाता है या फिर हर बार चौंकाने वाले फैसले लेने वाली मोदी सरकार कुछ और करती है।

राम मंदिर और सेंट्रल विस्टा

आस्था और सियासी दृष्टि से बेहद अहम भगवान श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य अयोध्या में बहुत तेजी से चल रहा है। इसके पहले चरण का काम पूरा हो चुका है। इसी महीने से मंदिर के दूसरे चरण का काम शुरू होगा। यूं तो कहा जा रहा है कि मंदिर का संपूर्ण निर्माण कार्य अगले साल यानी 2023 के अंत तक पूरा होगा, लेकिन जिस गति से काम चल रहा है, उससे उम्मीद यही जताई जा रही है कि इसी साल के अंत तक इसका एक भव्य प्रारूप सामने आ जाएगा। यह भी बताया गया कि पूरे परिसर में सिर्फ 30 प्रतिशत का ही निर्माण होगा जबकि 70 प्रतिशत मंदिर खुला और ग्रीन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या में निर्माण कार्यों का जायजा भी ले रहे हैं। वैसे पूरा निर्माण इसके लिए बनाए गए ट्रस्ट की देखरेख में हो रहा है। पिछले दिनों आसपास की जमीन खरीद मसले को विपक्ष ने जोरदार तरीके से उठाया जिसकी जांच के आदेश दिए गए हैं।

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर भी काम तेजी से चल रहा है। इसकी डेडलाइन इसी साल अक्तूबर है। कोविड के दौरान भी यहां दिन-रात काम चलता रहा, जिस पर विपक्ष ने हंगामा किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। बताया जा रहा है कि यहां करीब 5000 मजदूर 24 घंटे निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इस संबंध में रोचक जानकारी यह भी कि सेंट्रल विस्टा (नए संसद भवन) में इस्तेमाल होने वाले सामान को बनाने का काम देश के 20 शहरों में चल रहा है। मथुरा में लाल पत्थर तरोश जा रहे हैं धौलपुर में पीले पत्थर। निर्माण में लकड़ी नागपुर से कांट-छांट के बाद आ रही है तो पेंडुलम कोलकाता में तैयार हो रहा है। नए संसद भवन में ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि लोकसभा में 888 सदस्य और राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकें। यह भविष्य में सीटों के परिसीमन एवं बदलाव को ध्यान में रखकर किया गया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रात में अचानक निर्माण स्थल के दौरे ने इस कयास को और बल दिया है कि तय समय से पहले-पहले सेंट्रल विस्टा बन जाएगा।

हां जी, अब 5जी

सूचना तकनीक में तो पिछले कुछ समय से क्रांति आ गयी है। कहां एक समय लैंड लाइन होना भी स्टेटस सिंबल होता था, कहां आज करोड़ों हाथों में ‘हाई स्पीड इंटरनेट’ वाला मोबाइल है। चलता-फिरता कंप्यूटर की तरह। लैंड लाइन और मोबाइल फोन की शुरुआत के बीच में बेहद छोटा समय पेजर का आया। लेकिन पेजर युग आंधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया। मोबाइल फोन की ऐसी क्रांति आई कि पहले 2जी फिर 3जी और 4जी के आते ही 5जी के लिए कवायद तेज हो गयी। यहां ‘जी’ से मतलब जनरेशन से है। अभी हम मोबाइल के चौथे जनरेशन में जी रहे हैं और बस इसी साल पांचवे जनरेशन वाला फोन उपलब्ध हो जाएगा। जहां तक हाईस्पीड इंटरनेट के साथ 4जी तकनीक का सवाल है, इसे सबसे पहले रिलायंस ने लॉन्च किया, या यूं कहें कि वह आया ही 4जी तकनीक के साथ। उसने कुछ महीने फ्री में इंटरनेट क्या उपलब्ध कराया, इंटरनेट उपलब्धता को लेकर सभी कंपनियों ने दाम गिराए। केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को जैसे ही 5जी ट्रायल की अनुमति दी, उन्होंने इसके लिए कदम आगे बढ़ा दिए। बताते हैं कि एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने इसके लिए टेस्टिंग भी कर ली है। बेशक यह तकनीक लोगों को कई सुविधाएं दे रही हैं, लेकिन समय-समय पर पर्यावरणविद इसके खतरों के प्रति भी आगाह करते रहते हैं। बताया जा रहा है कि 5जी तकनीक आने के बाद कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, यातायात प्रबंधन, स्मार्ट सिटी के कई एप की लंबी रेंज आमजन के सुलभ होगी। इसके अलावा डिजिटल ट्रांजेक्शन को और सरल और सुविधाजनक बनाया जाएगा। एक ओर जहां निजी दूरसंचार कंपनियां 5जी नेटवर्क के साथ लगभग तैयार हैं, वहीं सरकार ने पूरे मसले की तकनीकी बारीकी के लिए आईआईटी बांबे, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर, आईआईएससी बेंगलुरू, सोसायटी फॉर एप्लॉयड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च और सेंटर फॉर एक्सिलेंस इन वायरलेस टेक्नोलॉजी को लगाया है।

नयी शिक्षा नीति का क्रियान्वयन

नयी शिक्षा नीति के पक्ष-विपक्ष में बातें उठतीं, इसके किंतु-परंतु को समझा जाता, उसी दौरान कोविड महामारी ने शिक्षा प्रणाली के अब तक के ढर्रे को ही बदल दिया। ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ चीजें हो पाईं, कुछ नहीं हुईं और कुछ अलहदा हुईं। फिर भी नयी शिक्षा नीति 2020 पर काम शुरू हो चुका है। यूं तो लक्ष्य रखा गया है कि 2030 तक स्कूली शिक्षा में सौ प्रतिशत जीईआर के साथ पूर्व विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय तक शिक्षा का सार्वभौमीकरण किया जाएगा। वैसे इसमें चिकित्सा ज्ञान एवं विधि की पढ़ाई को अलग रखा गया है। इससे पहले पहले 10+2 के पैटर्न को बदलकर 5+3+3+4 का पैटर्न फॉलो किया जाना है। इस संबंध में कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गोवा सरकार ने टास्क फोर्स बनाया है। पहले एनसीसी 12वीं तक की पढ़ाई के दौरान लिए जाने का प्रावधान था जिसे अब विश्वविद्यालय स्तर तक शुरू किया गया है। इसके साथ ही कई तरह के परिवर्तन किए गए हैं जिनमें से भाषा संबंधी परिवर्तन भी है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनायी गयी थी, जिसमें 1992 में कुछ संशोधन किया गया था। कोविड के दौरान ही शिक्षा नीति के मसौदे पर सुझाव मांगे गए। शिक्षा मंत्रालय को इस संबंध में सात हजार से ज्यादा सुझाव मिले हैं। बेशक अभी कुछ आपत्तियां हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि करीब तीन दशकों बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन किया गया है जो युवाओं को रोजगारोन्मुखी बनाएगी। इस नीति को पूरी तरह लागू होने के बाद देखना होगा कि इससे कितना फर्क पड़ा है। साथ ही यह भी कि इस साल यानी 2022 में इस नीति में और क्या परिवर्तन होते हैं।

 उत्तर और पूर्वोत्तर में सबसे ऊंचे पुल

तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर में दो सर्वाधिक ऊंचे पुलों का निर्माण बहुत तेजी से जारी है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल ये पुल बनकर तैयार हो जाएंगे। इनमें से एक तो है 111 किलोमीटर लंबी जिरीबम-इंफाल नयी रेलवे लाइन। कहा जा रहा है कि मणिपुर की नोनी पहाड़ी घाटी में बन रहा यह पुल दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा। वैसे इंफाल से इसके जुड़ने की डेडलाइन अगले साल यानी 2023 है, वैसे इसका एक हिस्सा इस साल पूरा हो जाएगा।

इसी तरह भारत के उत्तर में यानी जम्मू-कश्मीर में भी एक सर्वाधिक ऊंचा पुल बन रहा है। यह पुल चिनाब नदी के ऊपर बन रहा है। कुछ समय पहले ही पुल का आर्क बनकर तैयार हो चुका है। बताया जा रहा है कि इस पुल की ऊंचाई एफिल टावर से भी 35 मीटर अधिक है। यह एक नदी के ऊपर और पहाड़ पर बनने वाला सर्वाधिक ऊंचा पुल होगा। इस पुल की डेडलाइन बीते साल दिसंबर में ही थी, लेकिन कुछ काम अभी इसमें बाकी है जो संभवत: जल्दी ही तैयार हो जाएगा। सुरक्षा के लिहाज से इस पुल में रोप-वे लिफ्ट की सुविधा भी होगी और सेंसर लगे होंगे, ताकि किसी भी प्रकार की खराबी आने पर तुरंत पता लग जाएगा।

पड़ोसियों से संबंध पर नजर

साल 2022 इस दृष्टि से भी अहम होगा कि भारत का अपने पड़ोसियों से कैसे संबंध रहते हैं। खासतौर से चीन और पाकिस्तान से। यहां उल्लेखनीय है कि कोविड के दौरान जहां समूचा विश्व महामारी से निपटने के उपायों पर लगा था, वहीं चीन गलवान घाटी में अलग ही खेल खेल रहा था। इसी तरह पाकिस्तान से घुसपैठ भी जारी थी। भारत ने दोनों ही मोर्चों पर डटकर मुकाबला किया, लेकिन चुनौतियां अभी बरकरार हैं। इस साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बैठकें होनी हैं। जाहिर है इन बैठकों में विस्तारवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दे भी उठेंगे। देखना होगा कि यह साल पड़ोसियों से रिश्तों के मामले में कैसा रहेगा?

- प्रस्तुति : फीचर डेस्क

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