गुरुवार, 13 मई 2021

आहूं... बड़ा इतिहास समेटे एक गांव

 

पुस्तक का मुखपृष्ठ

 केवल तिवारी

आहूं से संबंधित कुछ बातें शुरू करूं उससे पहले मुझे याद आ रही है कुछ साल पहले हरियाणा के आईपीएस अधिकारी राजबीर देसवाल की एक किताब विमोचन से संबंधित कार्यक्रम की। उनकी किताब थी अंटा। मुझे हैरानी हुई। चूंकि मेरा असाइमेंट लगा हुआ था, कवरेज करने गया। पर मन में सवाल थे कि अंटा क्या है। वहां पहुंचकर देसवाल जी से छोटी सी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया अंटा उनका पैतृक गांव है। लेकिन गांवों की कहानी सबकी एक जैसी ही होती है। फिर वह किताब देखी, वहां लोगों की चर्चाएं सुनीं तो लगा, खेत, खलिहान, दौड़-भाग, अपनापन गांवों में ऐसा ही तो होता है, हां भौगोलिक या ऐतिहासिक विवरण या परिस्थितियां थोड़ी अलग हो सकती हैं। बेशक वह किताब ऐतिहासिकता के बजाय संस्मराणात्मक शैली में ज्यादा थी। आज समय चक्र इतनी तेजी से बदला है कि गांवों से कई कारणों से अधिसंख्य जनता शहरों की ओर रुख कर चुकी है। शहर में तो हालात लगभग वैसे ही दिखते हैं जैसे किसी शायर ने लिखा है-

अपना ही शहर हम को बड़ा अजनबी लगा, अपने ही घर का हम को पता पूछना पड़ा।

लेखक शिव कुमार

खैर, लौटते हैं मूल मुद्दे पर। यानी ‘आहूं’ पर। सूचना मिली कि शिव कुमार जी की गांव के बारे में शोधपरक किताब प्रकाशित हो चुकी है। शिव कुमार जी से मेरी मुलाकात करीब दो साल पहले हुई। हरेश जी की बिटिया अपर्णा की शादी में। हरेश वशिष्ठ जी, हमारे (दैनिक ट्रिब्यून) के पूर्व समाचार संपादक। शिव कुमार जी हरेश जी के बहनोई हैं। बारात स्वागत से कुछ घंटे पूर्व हरेश जी के भाई जस्टिस शेखर जी और दैनिक ट्रिब्यून में हमारे साथी दीपक जी के साथ चर्चा हो रही थी। बातों-बातों में पुस्तकों को पढ़ने एवं उनकी समीक्षा पर चर्चा हुई। इसी दौरान शिव कुमार जी और दीदी से भी मुलाकात हुई। फिर तो बातों का सिलसिला चल पड़ा। उसी वक्त उन्होंने बताया कि वह अपने गांव के बारे में शोधपरक काम कर रहे हैं। किताब के रूप में वह जल्दी ही आएगी। मेरी उत्सुकता तभी से थी। अभी किताब पूरी पढ़ी नहीं, लेकिन जो थोड़ी-बहुत जानकारी मिली है, उसे देखकर लग रहा है कि किताब निस्संदेह रोचक होगी। बेशक मसला एक गांव का हो, लेकिन इसके तार बहुत दूर-दूर तक फैले होते हैं। फिर आहूं के तार तो पाकिस्तान तक जुड़े हैं। इसमें कोई शक भी नहीं कि गांव तो गांव ही होते हैं। उनका मूल स्वरूप कुछ इसी तरह का होता है-

पता अब तक नहीं बदला हमारा, वही घर है वही क़िस्सा हमारा।

गांव में लोग एक दूसरे को जानते हैं। इस गांव का भी यही हाल है। यह अलग बात है कि ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण एवं प्राचीन होने के नाते इसकी जड़ें दूर-दूर तक जा पहुंची।

एक ही धरती हम सब का घर जितना तेरा उतना मेरा

दुख सुख का ये जंतर-मंतर जितना तेरा उतना मेरा

असल में आहूं कैथल जिले की पूण्डरी तहसील का एक गांव है। खुद में कैथल ही बहुत ऐतिहासिक इलाका है। दो साल पहले यहां भी जाना हुआ तो पता चला कि इसका पौराणिक नाम कपिस्थल है। यह नाम हनुमानजी के नाम पर पड़ा। बाद में यह कपिस्थल से अपभ्रंश होकर कैथल बन गया। खैर, कैथल के आहूं के ही मूल निवासी शिव कुमार ने अपने इस गाव के इतिहास पर पुस्तक लिखी है। कहा जा रहा है कि इस पुस्तक के प्रकाशित होने पर आहूं पहला गांव बन गया है जिसका लिखित इतिहास है। मैंने इस लेख की शुरुआत में जिस गांव का जिक्र किया था, वह असल में ऐतिहासिक दस्तावेज न होकर संस्मरणात्मक विवरण है। लेकिन आहूं ऐतिहासिक डॉक्यूमेंटेशन जैसा है। यह पुस्तक लेखक के लगभग पांच वर्षों के शोध का परिणाम है जिसके छपने की गांव के लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे ।
281 पृष्ठ की इस पुस्तक में गांव के इतिहास के लगभग हर पहलू का वर्णन है।
 गांव का नाम कैसे पड़ा लेखक की यह खोज ऋग्वेद और पुराणों तक पहुंची है। लेखक का मत है कि गांव का नाम अहन नामक प्राचीन तीर्थ के नाम पर पड़ा है जिसकी पुष्टि में लेखक ने प्राचीन तथा नवीन कई ग्रंथों के सन्दर्भ भी दिए हैं। गांव कब बसा, गांव में बसी अलग जातियों और गांव आने वाले पूर्वजों के विवरण भी पुस्तक में दिए गए हैं। इस गांव में एक किला भी था तथा यह गांव लगभग सौ वर्ष तक एक सिख परिवार की जागीर रहा। गांव में मुसलमान राजपूत तथा अन्य कई जातियों के मुसलमान भी रहते थे जो आजादी के समय हुए बंटवारे में पाकिस्तान चले गए थे। पुस्तक में उनके बारे में विस्तार से वर्णन है तथा यह भी लिखा है की वे पाकिस्तान में कहां जा कर बसे हैं। इसके अलावा गांव के प्रशासन के पुराने नियम कायदे, जमीन से सम्बंधित मामले, गांव की आबादी, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा गांव के विशेष लोगों पर भी अलग अलग अध्याय हैं। पुस्तक में गांव में हुई रुचिकर घटनाओं का भी बीच बीच में वर्णन है।

बताया गया है कि गांव में रहने वाले तथा वहां से आसपास के शहरों में बस गए हर परिवार को पुस्तक की एक प्रति दी जाएगी। वाकई गांव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी से रू-ब-रू होना बहुत रुचिकर होगा। अब आते हैं लेखक के संक्षिप्त परिचय पर-
लेखक शिव कुमार के पिता धनी राम इस क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित वैद्य रहे हैं और लेखक केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के पूर्व अधिकारी हैं। शिव कुमार जी का मानना है कि यह पुस्तक अपनी तरह की पहली पुस्तक है और इस में आहूं के अतिरिक्त आसपास के इलाक़े की भी ऐतिहासिक और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां हैं। लेखक ने गांव के इतिहास पर और अधिक शोध के सुझाव भी दिए हैं तथा गांव के इतिहास पर शोध के लगभग पांच साल के अपने अनुभव भी पुस्तक में ही सांझा किये हैं। लेखक ने गांव से पाकिस्तान चले गए राजपूत मुसलमानों के बारे में काफी विस्तार से लिखा है जिनके बारे में जानकारी प्राप्त करना आसान नहीं रहा होगा ।
लेखक का कहना है कि गांवों का इतिहास पूर्ण रूप से उपेक्षित रहा है जिसके बारे में कभी कोई शोध नहीं हुआ है। गांवों
 का इतिहास रुचिपूर्ण बातों से भरा होता है लेकिन उपेक्षा के कारण धीरे धीरे ख़त्म होता रहता है। गांवों के इतिहास में सबसे आकर्षक पहलू यह है कि इसमें अपने ही पूर्वजों तथा अपने ही स्थान का वर्णन होता है जिससे लोग सबसे अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। लेखक का मानना है कि यह पुस्तक गांवों के इतिहास लेखन की नयी परंपरा स्थापित करेगी। लेखक अब अपने परिवार के इतिहास तथा वंशावली पर भी काम कर रहे हैं। सचमुच काम बहुत रोचक हो रहा है। इससे प्रेरित होकर और लोग भी गांव और वंशों के बारे में कुछ शोधपरक काम करेंगे। सच में कुछ ऐसी-वैसी बातें भले कही जाएं लेकिन काम जारी रहना चाहिए बेशक लोग कहते रहें-

कोशिश के बावजूद ये इल्ज़ाम रह गया, हर काम में हमेशा कोई काम रह गया।

शिव कुमार जी को इस शोधपरक काम के लिए साधुवाद। कोरोना महामारी के दौर में आमने-सामने संवाद संभव नहीं, लेकिन उम्मीद है कि पुस्तक पर विभिन्न मंचों पर सार्थक चर्चा होती रहेगी। 
बुजुर्ग का साथ और हाथ में पुस्तक


2 टिप्‍पणियां:

  1. लेखक की टिप्पणी

    बहुत बढ़िया लिखा है केवल जी ने . कृपया मेरी ओर से उनका पुरजोर धन्यवाद भी ज्ञापित कर दीजिये

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  2. वैसे मैटर काफी तैयार मिला। पुस्तक पूरी पढ़कर कुछ और लिखूंगा।

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