शनिवार, 6 अगस्त 2022

रक्षाबंधन और मुहूर्त : वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल ने दूर की भ्रम की स्थिति

राहुल देव 
सावन का महीना कई अर्थों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक तो इस महीने विवाहितएं अपने पीहर जाती हैं और सखियों संग झूला झूलती हैं। अठखेलियां करती हैं। इसके अलावा भी सावन के पवित्र महीने में शिव शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। इस सबके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं,आध्यात्मिकता भी है और धार्मिक भावनाएं भी हैं। सावन के महीने का समापन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते वाला रक्षाबंधन पर्व के साथ होता ह। रक्षाबंधन का पर्व समय-समय पर कई चीजों की यादों को समेटे हुए हैं। इसमें कुछ कुछ परिवर्तन भी होता रहा है। भाई बहन के अलावा रक्षा सूत्र ब्राह्मण द्वारा बांधा जाना या अपने प्रकृति के प्रति रक्षा की भावना रखना, पर्यावरण को स्वच्छ रखना ऐसे ही अनेक कारण इस पवित्र त्यौहार के पीछे हैं। इसके अलावा भी सावन के महीने में खानपान का एक अलग अंदाज रहता है। मीठा ज्यादा खाया जाता है...
खैर इन सब बातों से इतर हम आते हैं रक्षाबंधन पर। जैसा कि कई बार होता है त्यौहार की असली तिथि यानी तारीख को लेकर कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है। रक्षा बंधन के संबंध में उत्पन्न भ्रमपूर्ण स्थिति को दूर करते हुए वेद माता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के पीठाधीश्वर आचार्य पंडित हुकमचंद मुदगल का कहना है कि रक्षा बंधन सदैव श्रावण मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है और पूर्णिमा उस दिन 18 से 24 घड़ी या अपराह्न व्यापनी होनी चाहिए, जोकि इस वर्ष 11 अगस्त को 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर 12 अगस्त को प्रातः 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। किंतु पूर्णिमा तिथि शुरू लगते ही भद्रा शुरू होगी जो रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, भद्रा के साए में राखी बांधना कष्टदायक हो सकता है। अति आवश्यक होने पर 11 अगस्त को भद्रा पूंछ या दुम के समय 5:18 से 6:18 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है अन्यथा 11अगस्त को 8:54 रात्रि से 9:50 रात्रि तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद 12 अगस्त को सूर्य उदय समय से 7:05 तक रक्षा बंधन किया जा सकता है। वेदमाता श्री गायत्री शक्तिपीठ, देवभूमि कसार के व्यवस्थापक एडवोकेट राहुल देव मुदगल ने बताया कि रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा पर वेदमाता गायत्री की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। उन्होंने बताया इसके अलावा भी शक्तिपीठ में विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए पूजा अर्चना के साथ साथ संस्कार संबंधी सुविचारों के आयोजन होते हैं।

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